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पूछे अपने आत्मा से कि ...
हम दुःखी क्यों ? - उपाध्याय मुनिश्री गुणधरनंदीजी
संसार में दुःख का जड़ राग है। राग का जीव को दुःख उत्पन्न होता है। जैसा कि हम प्रतिदिन पत्रिका पढ़ते हैं, उसमें लिखा रहता है कि अमुक देश, अमुक प्रांत में १०० व्यक्ति मरे, आप उस समाचार को पढ़कर दुःखी नहीं होंगे परन्तु उसी समाचार में आपके पुत्र के मरने की खबर होती तो आप तुरंत रोना प्रारम्भ करेंगे तथा आपका मन उसी क्षण दुःख से द्रवित हो जायेगा । आपको अत्यंत दुःख उत्पन्न होगा। इसका कारण यह है कि अपने पुत्र के प्रतिराग है इस कारण आपको दुःख होता है और १०० व्यक्तियों के प्रति आपका राग (मोह) नहीं है इस कारण से १०० व्यक्ति मरने के बावजूद भी आपको दुःख नहीं है । इसका कारण है- राग। राग आग है, संसार में इसके समान आग नहीं है ।
आग तो फिर भी थोड़ी देर में जला के खत्म हो जाती है। परन्तु यह राग जो है आत्मा को अनन्त काल जलाता रहता है। यह आग मानव को जर्जरित कर देता है। एक बार भगवान महावीर स्वामी से गौतम गणधर ने प्रश्न किया- हे भगवन्त मुझे केवलज्ञान कब उत्पन्न होगा? भगवान का प्रत्युत्तर था- जब तुम्हारे अंदर विद्यमान राग खत्म हो जायेगा, उसी क्षण तुम्हें केवल ज्ञान उत्पन्न हो जायेगा । अतः जब तक मोहरूपी राजा विद्यमान रहता है तब तक जीव को संसार बंधन से छुटकारा नहीं मिल सकता है। जब मोहनीय कर्म नष्ट होता है तब उसके अन्तर शेष ३ घाति कमों का विध्वंस होता है। अतः कर्मों का राजा मोह ही है । जब तक मोह रूपी राजा को परास्त नहिं किया जाता तब तक शेष कर्मों को नष्ट नहीं होता तब तक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। अतः केवल ज्ञान का बोध, यह मोह ही है । पांडुनंदन पांडव एक दिन संसार से विरक्त हो गये
और राज पाट को त्याग करके पाचों पांडव ने एक साथ जिनेश्वर (दिगम्बर) दीक्षा को अंगीकार किया तथा एक साथ ही पाँचों पांडव तपस्या में तल्लीन हो गये । एक दिन उनका शत्रु आया और पाँचो पांडव पर उपसर्ग करना प्रारम्भ कर दिया, पहले पांडवों को लोहा गरम करके चिपकाया तो भी पांडव कुछ नहीं बोले फिर उसने लोहे को पूर्णतः गरम करके कानों में कुंडल की तरह पहनाया, लोहे का जठोगीत बना कर बाजु में बांधा और लोहे को गरम करके पैर में पायजामा के रूप में पहनाया । इस प्रकार वह शत्रु पांडवों पर घोर उपसर्ग होने लगा तो नकुल और सहदेव के मन में थोड़ा सा राग का चिंगारा उदयमान हुआ। वह इस प्रकार उत्पन्न हुआ। नकुल और सहदेव सोचने लगे हम दोनों तो जवान है, हम दोनों का अभी यौवन अवस्था है। अतः इस उपसर्ग को हम दोनों सह सकते, परंतु भीमादि ३ पांडवों का शरीर वृद्धावस्था को प्राप्त हो चुका है। अतः वृद्ध अवस्था में इस संसार कारण बन गया फिर हम लोग परिवार, धन, वैभवादि से अत्यन्त मोह करें तो हमारी क्या दशा होगी ? आचार्य
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