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________________ विचारणीय हो जाता है । पं. अमृतलाल शास्त्री जैन दर्शन साहित्याचार्य ने इस समस्या के समाधान हेतु जब श्वेतांबर आचार्य प्रभाचन्द्र सूरि रचित 'प्रभावक चरित' (सं. १३३४) का आलोड़न किया, तब उन्हें इसके अन्तर्गत १६६ पद्यों में निबद्ध 'श्रीमानतुङ्ग प्रबन्ध' में एक संभावित समाधान स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ । 'एक मन्त्री के अनुरोध पर सम्राट हर्षवर्धन ने आचार्य मानतुंङ्ग से चमत्कार दिखलाने की इच्छा व्यक्त की तथा निष्ठुर सिपाहियों द्वारा ४४ बेड़ियों से पैरों से सिर तक जकड़ कर उन्हें अन्धकारमय कोठारी में बन्द करवा दिया । तब स्तोत्र रचना के प्रभाव से वे बेड़िया तड़तड़ाकर टूट गई, ताला भी टूट गया और फाटक खुलने पर वे भी बाहर गये । इस घटना ने सम्राट् के भीतर श्रद्धा का बीज अंकुरित कर दिया ।' पं. अमृतलालजी के दृष्टिकोण से ४४ पद्यों की मान्यता का आधार कथानक में आयी हुई ४४ बेड़ियाँ है । भक्तामर के प्रक्षिप्त काव्य : किन्हीं प्राचीन प्रतियों में चार अतिरिक्त पद्य चार प्रकार से उपलब्ध होते हैं। अनेकान्त, वर्ष २, किरण १ में ४ प्रातिहार्यों की पुनरक्ति है, जैन मित्र फाल्गुन सुदी ६, वि.नि.संवत् २४८६ में स्तोत्र पाठ के फलपूर्वक समाप्ति की गई है, रचना वैषम्य हैं एवं अर्थ भी सुसंगत नहीं है, श्री तिलकधर शास्त्री लुधियाना १८७० की प्रति में 'बीजक काव्य' शीर्षक से दिये गये काव्यों की स्थिति भी उन्हें मूल स्तोत्रकर्ता की रचना प्रमाणित नहीं करती और चतुर्थ प्रति में भी छन्दोभंगादि विसंगतियाँ हैं अतः मनीषियों ने भक्तामर के ४८ काव्य ही माने हैं, ५२ नहीं मृगो भक्तामर में पाठभेद : जैन निबंध रत्नावली (१) एवं भक्तामर रहस्य में निम्नलिखित पाठान्तरों की जानकारी मिलीः श्लोक.क्र. चरण प्रचलित पाठ पाठ भेद भवजले भवनिधि विबुधार्चित पाद विबुधार्चित पाद पीठं मृगी तच्चाम्रचारू तच्चारूचूत प्रभावात् प्रसादात् नात्युद्भूत अत्यद्भुतं रपवर्जित रपि वर्जित तेजः स्फुरन्मणिषु तेजो महामणिषु नैवं तु ।। काचोद्भवेषु न तथैव विकासकत्वम्।। पवित्र om xury BCCM codocm पुमांस 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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