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________________ पर सैंकड़ों जिन प्रतिमायें हैं । सैकड़ों शासन भी है । पूराने जमाने में यहाँ और आसपास में जैन लोग अत्यधिक प्रसिद्धि के साथ रहे होंगे। इस पहाड़ पर सैंकड़ों साधुवृन्द अपने तप, ध्यान में लीन रहे होंगे । यह स्थान जैन एवं जैन मुनियों के लिए केन्द्र था । यहाँ के शासनों में महात्माओं के नाम गिनायें गये हैं। जैसे कि गुणसागर भट्टारक के शिष्य सातदेव के द्वारा बनवायी गई मूर्ति, श्रीवर्द्धमान के शिष्य श्रीनन्दी शांति से बनवायी गयी मूर्ति, कनकवीर महानुभाव से बनवायी गयी प्रमिमा, शन्तिसेन महानुभाव से बनवाई गई प्रतिमा आदि.. इसके बारे में विशेष रूप से जानना है तो साउथ इण्डिया इन्सकीप्शन ग्रंथ में देख लेवें। पूराने जमाने में यहाँ जैन सिद्धान्त पढ़ाया जाता था और एक शासन बतलाता है कि दान में इसके लिए जमीन दी गयी थी । यहाँ की प्राकृतिक छटा अत्यन्त मनमोहन है । पर्वत की उपत्यका में एक मन्दिर है। यह गुफा को काटकर बनाया गया है। यहाँ के लोग पहले अष्टान्हिका के समय रथोत्सव मनाते थे। यह जैन परंपरा का प्रतीक है। पर्वत की तलहटी में १५-२० कुण्ड है जिनमें निर्मल जल भरा रहता है । ऊपर यहाँ करीब २०० जिन प्रतिमायें हैं और यक्ष-यक्षिणियां भी हैं । यहाँ पर शासन देवताओं की परंपरा हमेशा रही थी। गुफा के अन्दर अजैन लोगों ने मुरुगनकोयिल बना रखा है। विशाल चट्टान के सामने वटवृक्ष है जिसकी छाया से यहाँ ठंडी बनी रहती है। इसके सामने अजैनों के तीन मन्दिर है । सुना जाता है कि यहाँ बलि(जीव हिंसा) दी जाती है । जीवरक्षा प्रचार सभा, चेन्नई के प्रयत्न से कहीं भी क्षुद्र देवी-देवताओं को बलि नहीं चढा सकते हैं । ऐसा बिल पास किया गया है। फिर भी छिप-छिपाकर कुछ दूरी पर कर डालते हैं। विशेष बात यह है कि करीब २० साल के पहले आचार्य निर्मलसागरजी महाराज तामिलनाडु पधारे थे । वे यहाँ सारे स्थानों पर गये थे । कोई भी स्थान बाकी नहीं है जहाँ आचार्य महाराज नहीं पधारे हों । उनके कारण अहिंसा का जोरदार प्रचार हुआ था। उन्होंने कलुगुमले में चातुर्मास भी किया था । एक सौ साल से दिगम्बर जैन मुनियों का विहार न होने के कारण हर जगह उनका विरोध होता था। फिर भी उन्होंने निर्भीकता के साथ सभी स्थानों और सभी गांवों में विहार किया था । उसके बाद करीब १० साल के पहले पूज्य विजयामती माताजी का भी विहार हुआ था । त्यागियों का संचार होता रहे तो जैनधर्म का प्रचार अवश्य होता रहेगा। इसमें कोई शक नहीं है। 93 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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