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पूरानी होनी चाहिए । इस कस्बे से लगभग १५ मील की दूरी पर अत्यन्त प्रसिद्ध ऐतिहासिक विशाल पर्वत चित्तनवासल (सिद्ध निवास) है ।
सिद्धन्नवासन
सिद्धन्नवासन गॉव के पूर्व में २ कि. मी. पर एक लम्बा पहाड़ है । इस पहाड़ के ऊपर शय्यायें (पत्थर के तख्त) है। इस स्थान पर जैन मुनिगण तप किया करते थे । इसमें पत्थर को काटकर बनाया हुआ १६०० वर्ष प्राचीन एक गुफा मन्दिर है । यह स्थान तमिलनाडु भर में अत्यन्त प्रसिद्ध है । पूराने जमाने में यह स्थान जैन साधुओं का केन्द्र था । इस गुफा मन्दिर के सामने उत्तर दक्षिण में २३ फुट लम्बा और १२ फुट चौड़ा एक मण्डप है। इसमें कई खम्बे है यह सभी एक ही चट्टान में खोदे हुए हैं। इसे देखने से बहुत आश्चर्य होता है । इस मण्डप के उत्तर में छत्रत्रय के साथ अरिहन्त भगवान् की मूर्ति है। दूसरी ओर पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति है । मण्डप के चारों ओर चित्रकला अंकित है । इसे देखने के लिए रोज सैकड़ों लोग आते हैं। ये चित्र जरा घीसे हुए हैं। फिर भी चित्ताकर्षक है । जो जैनधर्मी हैं, उन्हें ऐसे परम पवित्र स्थलों का एक बार दर्शन करना अतीव आवश्यक है । जिससे जन्म सफल अवश्य होगा, क्योंकि हजारों एवं लाखों मुनिराजों के चरणस्पर्श से यह स्थल एकदम पावन है । अतः यह स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इस मण्डप के बीच में चट्टान को खोदकर तैयार किया हुआ गुफा मन्दिर है। इसकी लम्बाई और चौड़ाई ११ फुट है। ऊँचाई करीब ६ फुट है । इस मन्दिर के अन्दर छत्रत्रय के साथ अरिहन्त भगवान् की तीन प्रतिमायें हैं । इस गुफा मन्दिर के निर्माणकर्ता जगत्प्रसिद्ध पल्लव राजाधिराज महेन्द्रवर्मन है। यह राजा ई. ६०० से ६३० तक चोल साम्राज्य का अधिपति था । एक कोने में उदारचित्त इस राजा की मूर्ति भी बनी हुई है। इस मन्दिर के उत्तर-पूर्व में एक स्वाभाविक गुफा है। इस गुफा के अन्दर जाना हो तो एलडिपट्टं रास्ते से जाना
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