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है, बीच में गुफाद्वार है। प्रवेश करते ही दाहिनी ओर पर्वत भित्ति पर उत्कीर्ण श्री १००८ पार्श्वनाथ प्रभु की चमत्कारयुक्त अतिशय मनोज्ञ यक्ष-यक्षिणी सहित खड्गासन मूर्ति है। इसके चमत्कार से आकृष्ट जैन-जैनेतर लोग दूर-दूर से आकर पूजा पाठ करते हुए मनौति करते हैं तथा अभीष्ट फल प्राप्त करते है।
अन्य धातु की मूर्तियां हैं। विशाल परिक्रमा है। बायीं ओर विशाल मण्डप है , मध्य में पद्मावती देवी का मन्दिर है। इसके पश्चिम में कुछ कमरे हैं। नीचे एक धर्मशाला है। यहाँ हर साल मई माह में १० दिन का ब्रह्मोत्सव मेला लगता है। हजारों लोग आकर शोभा बढ़ाते हैं । इस मन्दिर का अच्छे ढंग से जीर्णोद्धार होकर प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। नरकाक्षी (सम्यग्दर्शन) व्रत वाले ४२ दिन व्रत करने के बाद वहाँ आकर उसकी पूर्ति करते हैं। एक जमाने में यहाँ आठ हजार जैन परिवार थे। उसका प्रमाण यह है कि 'तिल्लै मूवायिरं तिरुनरुंकुन्द्रं एण्णायिरं' यानि लोकोक्ति अब भी कही जाती है कि चिदाम्बरम में तीन हजार और तिरुनरुंकुन्द्र में आठ हजार जैन थे । यहाँ धातु प्रतिमा की चोरी हुई थी। चोर अपने आप आकर पकड़ा गया। इससे इस क्षेत्र का चमत्कार जाना जा सकता है। वर्तमान में यहाँ जैनों के दो ही घर है और एक पूजारी है परन्तु यह महान् अतिशय क्षेत्र है।
यह गाँव चेन्नई से तिरुचिरापल्ली जाने के रास्ते पर है । उलुन्दूरपेट उतर कर तिरुवन्नै नल्लूर से (रोड़ से) पिल्लैयार कुप्पं जाना है। वहाँ से यह क्षेत्र ५ कि.मी. पर है । बस की व्यवस्था है । महासभा के फण्ड से इसके जीर्णोद्धार कार्य में सहायता मिली है।
तिरुक्कोयिलूर :- यहाँ के कृष्ण मन्दिर का ध्वजस्तंभ जैनस्तम्भ सा मालूम पड़ता है । इससे अनुमान किया जाता है कि यह मन्दिर पहले जैन मन्दिर रहा होगा। यहाँ के राजाओं में बहुत से राजा जैन थे।
दादापुरं :-- इसका पूराना नाम 'राजराजपुरं' था । यहाँ के कृष्ण मन्दिर के शासन में बताया गया है कि यहाँ जैन मन्दिर था । यह शासन राजकेशरीवर्मा राजराजदेव का है। दूसरी बात यह है कि चोल राजा की बहन ‘कुन्दवै देवी' ने अपने नाम से 'कुन्दवै जिनालय' बनवाकर उस मन्दिर के लिए कुन्दवै देवी ने सोना, चॉदी के बर्तन, मोती, जमीन आदि दान किया था। इस राजकुल देवी ने पोलूर तालूका तिरुमलै में और तिरुच्चि तिरुमलैवाडी में जैन मन्दिरों को बनवाया था ।
पल्लिचन्दल :-- (तिरुकोविलूर तालूका) यहाँ की छोटी पहाड़ी पर एक जैन मन्दिर है। यहाँ बाहुबली भगवान् की मूर्ति है । यहाँ का शासन ई.१५३० का विजयनगर अच्युतदेव महाराजा का है।
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