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प्रयास करना योग्य है । शास्त्रकार महाराजा प्रथम तो सर्व विरतिपने का ही उपदेश करते हैं। लेकिन जब श्रावक असमर्थ तथा निरूत्साही प्रतीत होता है, तो देशविरति आदि का उपदेश देते हैं।
सूचना १ पृष्ट १५५ की५वीं पंक्ति में उस शेरडी] का रस दो घडीबाद अचित्त है। ऐसा लिखा गया है लेकिन उसका समय बतलाया गया नहीं हैं । इसलिये श्री लघुप्रवचनसारोद्धार में उसका समय दो पहर कहा गया है । इसके बाद वह अभक्ष्य है। इस बाबत में खुलासा करने का कारण यही है कि-वर्षीतप के पारणेके समय कई एक अणजान श्रावक भाइयों ऐसा कालातीत रस काम में लेते हैं। तो उन्हे उपयोग रखना जरूरी है।
२. बादाम, पीस्ता, चारोली, काली लाल-श्वेत कीसमिस (द्राख), अखरोट, कोकनी केला, खूबानी, अंजीर, मुंगफली, सुखें कोपरें, सुखी रायण, कच्ची खांड, सूखे बखाइ बेर, इत्यादि
और पृष्ठ १११ में फाल्गुन चौमासी के बाद अभक्ष्य में गिनाये गये हैं । प्रथम आवृत्ति में इन चीजों के अषाड चौमासी के बाद त्याग करने का लिखा है । सूखे मेवे को फाल्गुन-चौमासीसें से अभक्ष्य होने का मतान्तर भी बतलाया है। इसी लिए इस आवृत्ति में उन्हें फाल्गुन चौमासी से ही अभक्ष्य गिनाये है।
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