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बारहमाननः-अतिथि संविभाग:-दुःखी ऐसे साधमिक श्रावकोंका बहोत्तर लाख के द्रव्य का कर माफ कर दिया। .. मुनिमहाराजाओं को (प्रथम तथा अन्तिम तीर्थङ्कर महाराजा के शासन में ) राज्यपिण्ड नहीं कल्पता है । इसी लिये भरत चक्रवर्ति के समान महाराजा कुमारपालने सीदाता कई स्वधार्मिक भाईयों का उद्धार किया । ____ महाराजा कुमारपालने श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज की धर्मशाला की मुहपत्ति का पडिलेहण कराने वाले स्वधार्मिक को पांचसौं अश्व और बारह गांव का आधिपत्य प्रदान किया । तथा सर्व मुहपत्ति पडिलेहण करने वालों को कुल पांचसौं गांव का दान दिया।
इस प्रकार विवेकियों में शिरोमणि के समान महाराजा कुमारपालने दूसरे भी कई भांति के पूण्योपार्जन किया था। उसमें से कुछ यहां लिखे गये हैं। इस प्रकार उत्तम धार्मिक कार्यों द्वारा उन्होंने सिर्फ दो ही भव बाकी है, इतना आत्म कार्य सिद्ध कर लिया (आनेवाली उत्सर्पिणी में पद्मनाभ प्रथम तीर्थकर महाराजा के गणधर हो कर वे उसी भव में सिद्धत्व को प्राप्त करेंगे) इसी लिये साधार्मिकों को योग्य सन्मान मान दिया है, तथा धर्म की सहायता-कर आदि छोड देना, दुःखीओं का उद्धार करना। तथा अढारह देशों में अहिंसा (अमारी पह) का प्रचार आदि से उसका उपकार प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
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