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४४ मजबूत कपड़े से दिनमें दो तीन बार छनने का कष्ट उठाने से भवान्तरमें दुःख भोगना न पड़े, अर्थात् सुख प्राप्त होता है । और क्रमानुक्रम शिवसंपदा मिलेगी । अर्थात् सुखी वनोंगे। और अनुक्रमशः शिवसंपदा को भी प्राप्त करोंगे । ४५ विशेषतो तुम्हारे घर के प्रधानपणे में तुमही जाणकार हो, इसलिये प्रत्येक कार्य उपयोग, विवेक, तथा जयणा पूर्वक करो ।
४६ तिथियों के दिन दलने, खांडने, पीसने, धोने, माथा गुंथने, नहाने, गोबर लेने जाना, गार करना इत्यादि आरंभ समारंभ करना, कराना तथा अनुमोदन करना नहीं ।
४७ तथा ३ चौमासे की, २ आयंबिल की ओलीको, तथा १ पर्युषण पर्वकी इस प्रकार ६ अट्टाइयो में उपर लिखे कोई भी आरंभ समारंभ त्रियोग ( मन, वचन, काया ) से करना नहीं ।
४८ मिथ्यात्व लौकिक पर्वः – जैसे कि दिवासा रक्षा-बंधन, श्राद्ध, नोरतां (नवरात्रि - व्रत ), होली संक्रांति, गाणेशचतुर्थी, नाग पंचमी, रांधण-पष्टी, शीळ- सप्तमी, ( वाशी न खाना), दुर्गाष्टमी ( गोकलअष्टमी ) राम नवमी (नोली नौमी), अहवा - दशमी (विजया-दशमी); भीम अग्यारशी (जेट शु. ११) वत्स द्वादशी धनतेरशी, अंनत-चौदश, अमावास्या, सोमवती, बुद्धाष्टमी, दशहरा, ताबूत, बकरीईद, [रेटीयावारश, राष्ट्रीय - सप्ताह महावीर आदि जयंतीओ, जीवदया दिन,
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