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________________ १४२ ५ बहुत आरंभ से उत्पन्न होनेसें नहि वापरने योग्य चोजें, ओर उनका त्याग करने का सबब - १ इस (शेरडी ) - बहुत खानेसेही इच्छा तृप्त होती है. और उनके छोतरे बहुत नीकलते हैं । चूसने से मुंह की लाळ में समुच्छिम पंचेन्द्रिय मनुष्योकी उत्पत्ति होती है । और मीठान होनेसे मुंगाओं वगैरह चढती है । उनके पर पांड पडने से एवं जनावरों के खाने से बडी हिंसा होती है । २ से १० तक, सीताफल, रायन, रामफळ, खलेलां, पके गुंदे, जांबू, करमदे, बोर वगैरह । यह चीजों के बीज फेंक देना पडता है । वोह मुहमें से नीकाल के, बहार डाला जाता है उनमें भी समुच्छिम मनुष्योंकी और उक्त मुताबीक दूसरे त्रस जीवोंकी हिंसा होती है । बोरमें से कीडे वगैरह जंतु नीकलतें है, उस्से भी वो अभक्ष्य हैं । I बरावरकी समाल तो यह कहलाती है की - हरेक चीजमें सें नीकाला हुआ बी, आम की गोंटी वगैरह को राखमें लपेट कर साफ करके फीर बहार छोडना चाहीये । गीले अंजीर, सेतुर, फालसे—ज्यादा बीज वाले पदार्थ होने से त्याग करने लायक है । शींगोडे -- विकार वृद्धिके निमित्त होने से वर्जना । वो तलव के पानी में होता है, उनके आजुबाजु बहुत स जीवों की उत्पत्ति होती है । जीसें सींगोंडे छीनते वख्त बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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