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________________ १३३ डालनेका दृष्टांत देखे है । मामुली इलाज करनेसे मीटे वैसा हो, तो भी नीकाल डालते है । अहा ! कुदरतकी बक्षीस हुइ चीजका ऐसा मामुली कारणसे विनाश करना, वो कीतनी अज्ञानता! ? पीछे वो उत्पन्न करा सकते हि नहि । संभव है कि-परदेशी कृत्रिम दांतोका विक्रयके लीये डॉक्टरोंका गुरुओं युरोपीय डॉकटरोंका यह चाल चलाइ हो । वास्ते अच्छे मनुष्यों उनका अवल कारणो दूर करके दांतकी सफाइ रखना। यहां थोडी यादि देना जरूरी है-की कीतनेक मुनिमहाराजाओ भी इसीतरह विषमाशनादि कारणोसें दांतके रोग के भोग होते हैं। और केइ केइ दंत संस्कार के प्रयोगमें जा रहे है। इनमें भी डॉक्टरोने चलाइ हुइ उपर मुजबकी बहुत गेरसमज है। दंतसंस्कार मुनि धर्मको दूषण रूप कहलाती है, और दांतकी वास्तविक शुद्धि भी नहीं होती है। वास्ते उनका मूल कारण हटानेका प्रयत्न करना, वोहि सर्वोत्तम इलाज है। जिन्होका पेट बराबर साफ है उन्होंकोदातन करनेकी भी जरूरत नहि रहती। क्यों की उन्होंका दांत और जीभ साफ रहती है। इसलीए उनको जीभका मैल उतारनेकी भी जरुर रहती नहि । दांत और जीम साफ करना पडता है, उतनीही पेटकी खराबी मान लेना। कीतनेक ऐसे मुनिमहाराजाओं देखे हैं की जीन्होंका दांत चमकते है और मुंहका श्वास सुगंधित होता है। जिसके मुखमें सवेरे पतला और सुगंधी पाणी होता है, उनका दांत जीभ विनाप्रयत्न साफ रहेंगे। और जिसके मुहमें सवेरे घट्ट, दुर्गधी, खट्टा, खारा, कडच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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