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तरहकी ? " अरे भव्यो ! किसका भक्षण हो जाता है ? वह बराबर सोचो.
हमलोगोंको बाईस अभक्ष्यके त्याग करनेमें उभय लोगकी भय रखके परदेशी मेंदेका बिल्कुल त्याग करना युक्त है, मीठा वालोंसे वैसी मीठाई लेनी नहि. और उन्हों के पासभी बनवानी भी नहि. और उनका व्यापार भी करना नहि, वैसी चीजें वापरने वाले के व्हां उस चीजका भोजन भी करना नहि, मिलके में देके साथ परसुलीका आटा, एवं रवा, मिलका आटा, भी खाना योग्य नहिं है । और चलित रसकी लीखी हुई सूचनाएं वांचके - ख्याल पूर्वक कितने दिनका और कीसी तरहका आटा भक्ष्य है ? वो समझ लेना। जहांसें अपन लोग (प्रमादि) आलस हो के वैसी चीजोंका उपयोग करने लग गये | व्हांसे उनके लीए बडीबडी मीले, फेक्टरीए, खुल गई, उनसे बहुत traint घात हो रही है । परदेशी मेंदेकी मीठाइआँ - परसुली की पुरी, घारी, मीठे फीके साटे, सुतफीन, गणगण गांठीये, नानखटाइ, हिन्दु बीस्कीट, सेव, जलेबी वगैरह.
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४ मीठे काजु - मीठाइ वाले लोग मीठे काजु बनातें है, वो प्रायः विगर देखे बनते है । जीनमें त्रस जीवोंका होना संभवित है । इस लीए वो नहिं खाना । मानो की खाने की मरजी हुइ, तो काजु के दोनो विभाग अलग अलग करके साफ कर, जीव को बचा कर, बाद घर बना के उपयोग में लेना । फीर सादे काजु खाना पड़े तो वो भी उसी तरह देख के
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