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१८ सें ४० तक-भाजी पाला वगैरह में आठ महिने तक जीव पड़ने से उनका जरुर त्याग करना चाहिए, भुजीयां, मुठीयां, वडा वगैरह में भी उनका उपयोग न करना चाहिए...
३१ नागरवेल के पान-आठ महिने तक नहिं वापरना। क्यों की उनमें सुक्ष्म जंतुओका संभव तो है, और हमेश पानीमें रहने से लील, फुल, सेवाल आदि अनंतकायकी हिंसा होती है। कोइ वख्त तंबोलीआ सर्पकी उत्पत्तिका भय होने से अपनी
और उनकी, उभय की हिंसा हो जाती है। जैसे प्रत्यक्ष दाखले बने हुवे है । वास्ते आठ महिने तक तो जरुर छोडना।
बहुत लंबा वख्त तक जलमें रहनेसें सचित्त भी है। फीर भी विलास और विकारोंकी वृद्धि करनेवाले होनेसें ब्रह्मचारीयों को सादाइकी नजरसें त्याग करने लायक है. ___आज के जमानेमें जहां पान-सुपारी की दुकान होती है। व्हां बीडीकी विक्री भी शुरु हो जाती है। फीर चहाकी होटेल, फीर उनमेंसें शरबतें,और उनमें से देशी दारुका प्रचार हो सकनेसे शराबके पीठों की स्थापना होती है। जैसा क्रम देखने में आता है। वास्ते लिखनेका भावार्थ यह है की-भविष्य में होनेवाली अपनी भावि प्रजा को दारु वगैरह आदतोंसे बचाने के लीए उनकी प्राथमिक भूमिका रूप पान सुपारी की दुकानों को उत्तेजन नहि देने की दृष्टिसें भी पानका खास त्याग करना चाहिए। कीतनेक लोग वानर का मांस हंडीमें पका के खाते है, वो गरीब लोग वो ही हंडी में कत्था भी पकाते है, जैसा मालूम हुआ है।
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