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________________ १०० ११ गिलोय (गुड़वेल) १२ लसण १३ वांस करेली १४ गाजर १५ लुणी याने साजी वन स्पति १६ लोढ़ी पद्मिनी कंद १७ गरमर (गिरिकर्णी ) [कच्छदेश में प्रसिद्ध है ] १८ किसलय पत्र १९ खीरसुआकंद २० थेग २१ हरिमोथ २२ लुण वृक्ष की छाल २३ खीलोडा कंद २४ अमृत वेली २५ मूळा २६ भूमी फोडा २७ बाथवे [बंधूला ] की भाजी २८ विरूढाहार २९ पलंकाकी भाजी ३० सुअर वल्ली ३१ कोमल आंबली ३२ आलू, रतालू, पिंडालू १८ किसलय पत्र - कोमल पत्ते । जो केवल ऐसे बिल्कुल नये मुलायम निकलते हैं । तथा सब वनस्पतियों के निकले हुए अंकूर । ये सब अनंतकाय होते हैं। इस प्रकारकी उगती हुई वनस्पति उगती हुई अनंतकाय होती हैं । बादमें प्रत्येक वनस्पति के थड, पत्र, अंकूरा, अंतर्मुहूर्त पश्चात् प्रत्येक रूप हो जाती है । और सब जीव च्यव जाते है । Jain Education International परन्तु, साधारण वनस्पति के थड, पत्रादि हमेशा अनंतकायपनेज रहती है । इन अनंतकाय पत्ते आदिका सर्वथा पच्चक्खाणकरने वाले [ अथवा कर लिया] हो, उन लोगोंने भाजी पत्त को उपयोग में लेते समय सावधानी से काम में लेना चाहिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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