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चोवीसी
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व्यान,
कवण मोह कंगाल ने, कवण रागादिक रंक, जो प्रभु साथे मेल छे, तो रहिये निशंक...२... अवर देव सवि परिहरी, धरिये अहनुं ध्यान, सुमति सुगुरु मुख थी, सुण्यं में तत्त्व निदान...३...
चंद्र प्रभु नु [८] चंद्रप्रभ सहेजे सदा, निःकलंक बिराजे, तो तेहने विधु ओपमा, कहो केही परे छाजे...१... अष्टम जिन अष्टमी मयंक, भाल स्थल दीपे, तेजे रवि कोटान कोटि, हेलाये जीपे...२... तारक गुण तुजमां वसे, अह अचंभा वात, राम प्रभु ताहरी कला, केणे कलि न जात...३...
सुविधिनाथ नु [६] सुविधि-सुविधि वंदिये, जे सुविधि देखाडे, मिथ्या विष उतारीने, शिवपुर पहोंचाडे...१... नवमो जिनवर नव-निधान, सम नवगुण दाखे, सुविधि समोवड ते हुमे, जे हैये राखे...२... सुविधि प्रभुने सेविये, जिम सीझे सवि काज, सुविधे सुमति गुरु सेवतां, राम वधे जगलाज...३...
शीतलनाथनु [१०] शीतल अंतर गुण भर्यो, बाहिर पण शीतल, जाते कंचन जे अमूल, ते न होय पीतल...१... नंदा नंदन सुर विनोद, नंदनवन सरीखो, मदन निकंदन कारणो, पावक सम परीखो...२...
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