SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चोवीसी [५५] आज अनंता भव तणां, पाप ताप दूरे गया, ऋषभ कहे जिन पूजतां, आनंद उच्छव थया...३... धर्मनाथ नु [१५] वंदु धर्म जिणंद, राजऋद्धि रमणी छोडी, इंद्रिय तजी जेणे, प्रीति मुक्तिशुं मांडी...१... छांड्यो भवनो पास, दास हुं स्वामी तारो, करुणावंत भगवंत, पार पेले उतारो...२... जपी जाप जिनवर तणो, हैडा मांही उलट घणो, कवि ऋषभ इम उच्चरे, धर्मनाथ श्रवणे सुणो...३... शांतिनाथ नु [१६] समरू शांति जिणंद, पुष्प तुज शीष चडावं, श्री जिन पूजन काज, नित्य तुज मंदिर आवं...१... रंगे गाऊं रसत्रुद्धि, सुख संपत्ति पाऊं, मन वचन काया करी, देव हुं तुजने ध्याऊं.. पूजतां तो पदवी लहुं, जपतां जग सुखी बहु, कवि ऋषभ इम उच्चरे, शांतिनाथ समरो सहु...३... कुंथुनाथ नु [१७] कुंथुनाथ जगदेव जिम, सुरपति मांही इंद्र, पंखी मांही जिम हंस, जिम ग्रहगणमांही चंद्र.. पर्वतमांही जिम मेरू, मंत्र मांही नवकार, . गढ मांही लंका कोट, सती जिम सीता सार...२... शत्रुजय सम तीरथ नहीं, अरिहंत सम नहीं देव, कवि ऋषभ इम उच्चरे, कुंथुनाथ करो सेव...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003635
Book TitleChaityavandan Chauvisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy