________________
चोवीसी
[५१] नहीं राग नहीं द्वेष, नाम निरंजन ताहरू, दीर्छ वदन विशाल, पाप गयुसवि माहरू...२.. नामे हं निरमल थयो, जपुजाप जिनवरतणो, कवि ऋषभ इणि पेरे कहे, आदिदेव महिला घणो..
अजितनाथ - [२] अजितनाथ अवतार, सार संसारे जाणु, जेणे जित्या मद आठ, इस्यो अरिहंत वखाणु...१. राज ऋद्धि परिवार, छोडी जेणे दीक्षा लीधी, टाळी कर्म कषाय, शिवनारी वश कीधी... अनंत सुखमां झीलतो, पूजो कर्म आठे खपो, कवि ऋषभ इम उच्चरे, अजितनाथ नित्ये जपो..
संभवनाथ नु [३] संभव जिन सुकुमाल, शीयल संजमधारी, वाणी गंग विशाल, सुणे नरपति ने नारी. अनंत ज्ञान जस बुद्धि, बंध कर्मना कापे, समर्यो सुख निवास, मुक्तिगढ हेला आपे...२... त्रीजो जिन त्रिभुवन वडो, भक्ति नवि चूको कदा, कवि ऋषभ इम उच्चरे, संभवजिन सेवो सदा...३...
अभिनंदन नु[४] . अभिनंदन जिनदेव सेव, जस सुरपति सारे, संवर रायनो पुत्र, सकल दुःख सोय निवारे...१... तुं बंधव तुं मात तात, पाप तुज नामे नाठा, दारिद्र दुःख दोर्भाग्य सोय, पण जाये नाठा...२...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org