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. प्रास्ताविक वक्तव्य ।
स्तवनोना, सज्झायोना, थोय-जोडाना संग्रहो बहार पडेला जोया. दृष्टि पथ पर आवता थय के चैत्यवंदन जेवा आवश्यक अंग तरफ कोई दृष्टि केम थई नथी ?
पर्वदिन-विविधतप-तीर्थ आदि प्रसंग तथा स्थळ ने अनुरूप एवा चैत्यवंदन ना संग्रह नी आवश्यकता जणाई ।
त्रिकाळ देववंदन करता श्रमण भगवंतो, पर्व तिथि आराधको, विविध तप ना तपस्वीओ आदिनी धर्माराधना तथा प्रभु भक्ति मां अमे पण किञ्चित निमित्तभूत बनी शकीए तेवा सदुद्देश थी प्रेराई ने
(१) चैत्यवंदन पर्वमाला
(२) चैत्यवंदन सग्रह [तीर्थ-जिन विणेप) प्रकाशित कराव्या बाद १२ चोविशी नो मगह
"चैत्यवंदन चोविशी"
प्रस्तुत करावी रहया छीए"अ-भि-न-व' श्रुत प्र-का-श-न नाम मार्थक करता आ संग्रह मां ७२५ जेटला चैत्यवंदनो, भक्ति योग मां डबेला आत्मा ने दर्शन शुद्धि माटे एक सुदर साधन रूप बनणे अने ज्ञान योगी ने माहिती नो खजानो पुरो पाऽशे.
गुजराती के हिन्दी कोई पण भाषामां सर्वप्रथम वखत ज प्रगट थई रहेला आ विशिष्ट संग्रह ने पण निःशुल्क [कोई ज वेचाण किंमत लोधा विना] श्रीसंघ नी सेवा मां अर्पण करावी रहया छीए। ए रीते अभिनव श्रुत प्रकाशन नु श्रुत ज्ञान ना बेचाण थकी संपत्ति-धन उपार्जन न करवानु लक्ष्य अमे आज पर्यन्त टकावी राखवामां निमित्त रूप बनी शवया छीए, तेनो अति हर्ष अनुभवीए छीए.
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