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________________ चोवीसी [५] अनंतनाथ नु [१४] अंत रहित अनंत देव, सेवो भवि भावे, जनम जरा संताप पाप, जिम दूरे जावे...१... त्रिभुवन जन आधार सार, साहिब सोभागी, वर कंचन सच्छाय काय, समता गुण रागी...२... वीतराग मन तुं वस्यो अ, रात दिवस अकांत, राम सकल सुख संपदा, भजतां श्री भगवंत...३... धर्मनाथ नु [१५] आतम धर्म विशुद्ध बुद्ध, लीला अलवेसर, निश्चय धर्म समाधिमय, स्वामी धर्म जिनेसर... कर्म धर्म भर शीतकार, शिव धर्म विधायी, समकित मर्म विधान अह, प्रणमो चित्त लायी...२.. ध्यान धरो मन दृढ़ करीओ, धर्मनाथन नीति, सुमतिविजय गुरु नामथी, राम लहे संपत्ति...३... शांतिनाथ नु [१६] पारापत उगारियो, जिणे निज तनु साटे, वरतावी जिणे जगत शांति,शांति अभिधा ते माटे...१... दुविध चक्रधर जे हुओ, अचिरानो नंदन, चंदनथी शीतल सरस, भव ताप निकंदन...२... शांतिनाथ जिन समरतां, सीझे सघलां काज, राम कहे जिन रागथी, लहिये त्रिभुवन राज...३... कुंथुनाथ नु [१७] तुं बंधव तुं माय ताय, तुं अंतर जामी, तुं साहिब आधार अंक, अक्षय परिणामी...१... We, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003635
Book TitleChaityavandan Chauvisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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