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जीवाजीवविभक्ति
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अध्ययन ३६ : श्लोक २२५-२३३
२२५. साहिया सागरा सत्त
उक्कोसेण ठिई भवे। माहिंदम्मि जहन्नेणं साहिया दुन्नि सागरा।।
साधिकाः सागराः सप्त उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। माहेन्द्रे जधन्येन साधिकौ द्वौ सागरौ।।
माहेन्द्रकुमार देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः किंचित् अधिक दो सागरोपम और उत्कृष्टतः किंचित् अधिक सात सागरोपम की है।
ब्रह्मलोक देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः सात सागरोपम और उत्कृष्टतः दस सागरोपम की है।
२२६. दस चेव सागराइं
उक्कोसेण ठिई भवे। बंभलोए जहन्नेणं सत्त ऊ सागरोवमा ।।
दश चैव सागरा: उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। ब्रह्मलोके जघन्येन सप्त तु सागरोपमाणि।।
लान्तक देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः दस सागरोपम और उत्कृष्टतः चौदह सागरोपम की है।
२२७. चउद्दस सागराइं
उक्कोसेण ठिई भवे। लंतगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा ।।
चतुर्दश सागराः उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। लान्तके जघन्येन दश तु सागरोपमाणि।।
महाशुक्र देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः चौदह सागरोपम और उत्कृष्टतः सतरह सागरोपम की है।
२२८. सत्तरस सागराई
उक्कोसेण ठिई भवे। महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमा ।।
सप्तदश सागराः उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। महाशुक्रे जघन्येन चतुर्दश सागरोपमाणि ।।
२२६. अट्ठारस सागराई
उक्कोसेण ठिई भवे। सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ।।
अष्टादश सागराः उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। सहस्त्रारे जघन्येन सप्तदश सागरोपमाणि।।
सहस्रार देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः सतरह सागरोपम और उत्कृष्टतः अठारह सागरोपम की है।
आनत देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः अठारह सागरोपम और उत्कृष्टतः उन्नीस सागरोपम की है।
२३०. सागरा अउणवीसं तु
उक्कोसेण ठिई भवे। आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा ।।
सागरा एकोनविंशतिस्तु उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। आनते जघन्येन अष्टादश सागरोपमाणि।।
प्राणत देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः उन्नीस सागरोपम और उत्कृष्टतः बीस सागरोपम की है।
२३१. वीसं तु सागराइं
उक्कोसेण ठिई भवे। पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई।।
विंशतिस्तु सागराः उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। प्राणते जघन्येन सागरा एकोनविंशतिः।।
आरण देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः बीस सागरोपम और उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम की है।
सागरा एकविंशतिस्तु उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत्। आरणे जघन्येन विंशतिः सागरोपमाणि।।
२३२. सागरा इक्कवीसं तु
उक्कोसेण ठिई भवे।
आरणम्मि जहन्नेणं
वीसई सागरोवमा।। २३३. बावीसं सागराई
उक्कोसेण ठिई भवे। अच्चुयम्मि जहन्नेणं सागरा इक्कवीसई।।
अच्युत देवों की आयु-स्थिति जघन्यतः इक्कीस सागरोपम और उत्कृष्टतः बाईस सागरोपम की है।
द्वाविंशतिः सागराः उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत। अच्युते जघन्येन सागरा एकविंशतिः।।
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