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________________ इस अध्ययन में जीव और अजीव के विभागों का निरूपण किया गया है। इसलिए इसका नाम 'जीवाजीवविभत्ती''जीवाजीवविभक्ति' है । जैन तत्त्वविद्या के अनुसार मूल तत्त्व दो हैं— जीव और अजीव । शेष सब तत्त्व इनके अवान्तर विभाग हैं। प्रस्तुत अध्ययन में लोक की परिभाषा इसी आधार पर की गई है : “जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए" । (श्लो० २ ) प्रज्ञापना के प्रथम पद में जीव और अजीव की प्रज्ञापना की गई है। उसकी जीव प्रज्ञापना का क्रम प्रस्तुत अध्ययन की जीव-विभक्ति से कुछ भिन्न है। यहां संसारी जीवों के दो प्रकार किए गए हैंस और स्थावर स्थावर के तीन प्रकार हैंपृथ्वी, जल और वनस्पति (श्लो० ६८-६६ ) स के भी तीन प्रकार हैं-अग्नि, वायु और उदार (श्लो० १०७ ) । उदार के चार प्रकार हैं- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ( श्लो० १२६ ) । प्रज्ञापना में संसारी जीवों के पांच प्रकार किए गए हैंएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचनेन्द्रिय ।' | 1 प्रस्तुत अध्ययन के जीव-विभाग में एकेन्द्रिय का उल्लेख नहीं है और प्रज्ञापना में त्रस - स्थावर का विभाग नहीं है। आचारांग (प्रथम श्रुतस्कन्ध) सबसे प्राचीन आगम माना जाता है । उसमें जीव-विभाग छह जीव-निकाय के रूप में प्राप्त है छह जीव - निकाय का क्रम इस प्रकार है-पृथ्वी, जल, अग्नि, वनस्पति, त्रस और वायु । आचारांग के नौवें अध्ययन में छह जीव - निकाय का क्रम भिन्न प्रकार से मिलता है—पृथ्वी, जल, तेजस्, वायु, वनस्पति और त्रस। वहां त्रस और स्थावर ये दो विभाग भी मिलते हैं।* आमुख आचारांग के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि जीवों का प्राचीनतम विभाग छह जीवनिकाय के रूप में रहा है। त्रस और स्थावर का विभाग भी प्राचीन है, किन्तु स्थावर के तीन प्रकार और त्रस के तीन प्रकार यह विभाग आचारांग में नही मिलता। स्थानांग में यह प्राप्त है। सम्भव है स्थानांग से उत्तराध्ययन में यह गृहीत हुआ है। प्रज्ञापना का यह विभाग और भी उत्तरवर्त्ती जान पड़ता है । जीव और अजीव का विशद वर्णन जीवाजीवाभीगम सूत्र १. पण्णवणा, प्रथम पद, सूत्र १४ । २. देखें- आयारो, प्रथम अध्ययन। ३. आयारो, ६ 19 19२ । ४. वही, ६ 1१1१४ । Jain Education International में मिलता है। यह उत्तरवर्ती आगम है, इसलिए इसमें जीव-विभाग सम्बन्धी अनेक मतों का संग्रहण किया गया है : (१) दो प्रकार के जीव- त्रस और स्थावर । (२) तीन प्रकार के जीव—स्त्री, पुरुष और नपुंसक । (३) चार प्रकार के जीव नैरयिक, तिर्यंच-योनिक, मनुष्य और देव । (४) पांच प्रकार के जीव— एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । (५) प्रकार के जीव- पृथ्वीकायिक, अप्रकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और वसकायिक । (६) सात प्रकार के जीवनैरयिक, तियंच, तिची, मनुष्य, स्त्री, देव और देवी । (७) आठ प्रकार के जीव प्रथम समय के नैरयिक, अप्रथम समय के नैरयिक। तिर्यय, तिर्यंच | " 77 27 " 21 カ 27 (८) नौ प्रकार के जीव पृथ्वीकायिक, अप्रकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय (६) दस प्रकार के जीव प्रथम समय के एकेनिद्रय, अप्रथम समय के एकेन्द्रिय । 37 द्वीन्द्रिय । दीन्द्रिय त्रीन्द्रिय त्रीन्द्रिय । चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय, " For Private & Personal Use Only मनुष्य, देव, "" " 37 " " 12 " " " 17 मनुष्य । देव । 27 " चतुरिन्द्रिय। पंचेन्द्रिय । इस प्रकार आगम-ग्रन्थों में अनेक विवक्षाओं से जीवों के अनेक विभाग प्राप्त होते हैं । प्रस्तुत अध्ययन में अजीव के दो भेद किए हैं-रूपी और अरूपी (श्लो० ४) । अरूपी अजीव के दस भेद हैं (श्लो० ४,५,६ ) : (१) धर्मास्तिकाय (२) धर्मास्किाय का देश, (३) धर्मास्तिकाय का प्रदेश, (४) अधर्मास्किाय, ५. ठाणं, ३।३२६,३२७ तिविहा तसा पं० तं० तेउकाइया वाउकाइया उराला तसा पाणा, तिविहा थावरा, तं०—पुढविकाइया आउकाइया वणस्सइकाइया । ६. जीवाजीवाभिगम, प्रतिपत्ति १६ । www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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