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कर्मप्रकृति
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अध्ययन ३३ : आमुख
न्यून या अधिक भी होती है।
३. कर्मों का अनुभाव (१) ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय
कर्म के विपाक को अनुभाग, अनुभाव, फल या रस कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस क्रोडाक्रोड सागर और जघन्य कहा जाता है। विपाक दो प्रकार का है तीव्र और मन्द । तीव्र स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है।
परिणामों से बन्धे हुए कर्म का विपाक तीव्र तथा मन्द परिणामों (२) मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति ७० क्रोडाक्रोड से बन्धे हुए कर्म का विपाक मन्द होता है। विशेष प्रयत्न के सागर तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है।
द्वारा तीव्र मन्द और मन्द तीव्र हो जाता है। (३) आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागर तथा ४. कर्मों का प्रदेशाग्र जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है।
कर्म प्रायोग्य पुद्गल जीव की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति के (४) नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति २०
द्वारा आकृष्ट होकर आत्मा के प्रदेशों के साथ चिपक जाते हैं। क्रोडाक्रोड सागर तथा जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है।
कर्म अनन्त-प्रदेशी पुद्गल-स्कन्ध होते हैं और आत्मा के असंख्य प्रदेशों के साथ एकीभाव हो जाते हैं।
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