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चरण-विधि
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(२३) अत्यक्षर-अक्षरों को अधिक कर उच्चारण करना । (२४) पदहीन पदों को कम कर उच्चारण करना । (२५) विनयहीन — विराम-रहित उच्चारण करना । (२६) घोषहीन - उदात्त आदि घोष-रहित उच्चारण करना । (२७) योगहीन - - सम्बन्ध-रहित उच्चारण करना । (२८) सुष्ठुदत्त - योग्यता से अधिक ज्ञान देना ।
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अध्ययन ३१ : श्लोक २० टि० ३६
(२६) दुष्टु-प्रतीच्छित --- ज्ञान को सम्यग्भाव से ग्रहण न
करना ।
(३०) अकाल में स्वाध्याय करना ।
(३१) काल में स्वाध्याय न करना । (३२) अस्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय करना । ( ३३ ) स्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय न करना ।
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