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________________ उत्तरज्झयणाणि ४५८ अध्ययन २८: श्लोक १६-१८ टि० १७-२० मोक्ष की प्राप्ति होती है। (६) अभिगमरुचि संक्षेपरुचि दर्शन-आर्यन्याय-दर्शन जीव आदि पदार्थों के संक्षिप्त निरूपण से प्रमाण-प्रमेय आदि सोलह पदार्थों के ज्ञान से मिथ्या-ज्ञान बोध प्राप्त कर जिन्हें सम्यग-दर्शन प्राप्त नष्ट हो जाता है। तदनन्तर राग-द्वेष और मोह का नाश होता हुआ हो। है। इससे धर्म-अधर्म रूप प्रवृत्ति का नाश होता है। इससे जन्म (७) विस्ताररुचि विस्ताररुचि दर्शन-आर्य-~का क्षय होता है और इससे दुःख क्षय होता है। दुःख का जीव आदि पदार्थों के विस्तृत निरूपण से अत्यन्त क्षय ही मुक्ति है-अपवर्ग है। मुक्तावस्था में बुद्धि, बोध प्राप्त कर जिन्हें सम्यग्-दर्शन प्राप्त सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म तथा संस्कार का हुआ हो। मूलोच्छेद हो जाता है। (८) क्रियारुचि अर्थरुचि दर्शन-आर्य----- इस प्रकार भारतीय तत्त्व-चिन्तन में मोक्ष विषयक अनेक वचन विस्तार के बिना केवल अर्थ-ग्रहण मान्यताएं प्राप्त होती हैं। से जिन्हें सम्यग-दर्शन प्राप्त हुआ हो। १७. (श्लोक १६) (E) संक्षेपरुचि अवगाढ़रुचि दर्शन-आर्यइस श्लोक में दस रुचियों का उल्लेख हुआ है। रुचि का आचारांग आदि वारह अंगों (द्वादशांगी) अर्थ है-सत्य की श्रद्धा, अभिलाषा। इन दस रुचियों में में जिनका श्रद्धान अति दृढ़ हो। विभिन्न अपेक्षाओं से होने वाले सम्यक्त्व के विभिन्न रूपों का (१०) धमताच परम-अवगाढ़ दर्शन-आर्य--- वर्गीकरण किया गया है। स्थानांग में इन्हें 'सराग सम्यग्-दर्शन' परमअवधि, केवलज्ञान, केवलदर्शन से कहा है। तत्त्वार्थ राजवार्तिक में दस प्रकार के दर्शन-आर्य प्रकाशित जीव आदि पदार्थों के ज्ञान से बतलाए गए हैं। ये दस दर्शन-आर्य दस रुचियों से कुछ जिनकी आत्मा निर्मल हो। समान और कुछ भिन्न हैं १८. पूर्वजन्म की स्मृति आदि (सहसम्मुइ.....) उत्तराध्यान तत्त्वार्थ राजवार्तिक 'सहसम्मुइ' का अर्थ है-----स्वस्मृति, जातिस्मृति, पूर्वजन्म (१) निसर्गरुचि आज्ञारुचि दर्शन-आर्य की स्मृति। 'सह' का अर्थ है-स्व और 'सम्मुइ' का अर्थ वीतराग की आज्ञा में विश्वास होने के है स्मृति। वृत्तिकार ने इसका अर्थ-सहसम्मति--आत्मा के कारण जिन्हें सम्यग-दर्शन प्राप्त हुआ साथ होने वाली सम्मति--किया है। तात्पर्य में दोनों अर्थ एक हो। हो जाते हैं। (२) उपदेशरुचि मार्गरुचि दर्शन-आर्य-- १९. भूतार्थ (यथार्थ ज्ञान) (भूयत्थ.....) मोक्ष-मार्ग सुनने से जिन्हें सम्यगू-दर्शन वृत्तिकार ने 'भूत' का अर्थ अवितथ किया है। उनके प्राप्त हुआ हो। अनुसार भूतार्थ का अर्थ है-यथार्थ विषय बाला।' यह अर्थ (३) आज्ञारुचि उपदेशरुचि दर्शन-आर्य----- स्पष्ट नहीं है। समयसार ग्रन्थ में मूलस्पर्शी अर्थ प्राप्त है। वहां तीर्थंकर आदि के पवित्र आचरण के व्यवहार नय के लिए अभूतार्थ और निश्चय नय के लिए उपदेश को सुन कर जिन्हें सम्यग-दर्शन भूतार्थ शब्द प्रयुक्त हुआ है। प्राप्त हुआ हो। प्रस्तुत श्लोक १७ से समयसार की निम्न गाथा की (४) सूत्ररुचि सूत्ररुचि दर्शन-आर्य----- तुलना की जा सकती हैआचारांग आदि सूत्रों को सुनने से जिन्हें भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च। सम्यग-दर्शन प्राप्त हुआ हो। आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं ।।१।१३।। (५) वीजरुचि बीजरुचि दर्शन-आर्य २०. जिनेन्द्र द्वारा दृष्ट (जिणदिङे) बीज पदों के निमित्त से जिन्हें सम्यग-दर्शन इसके संस्कृतरूप दो बन सकते हैं-'जिनदृष्टान्' आर प्राप्त हुआ हो। 'जिनादिष्टान्'। पहले का अर्थ होगा-अर्हत् के द्वारा देखा १. वैशेषिक सूत्र, ११।२। २. न्यायसूत्र, १११।२२। ३. जयन्त न्यायमंजरी पृ० ५०६। ४. बृहद्वृत्ति, पत्र ५६३ । ५. ठाणं, १०१०४। ६. तत्त्वार्थ राजवार्तिक, ३३६, पृ० २०११ ७. बृहदृवृत्ति, पत्र ५६४ : सहसंमुइअ त्ति सोपस्कारत्वात सूत्रत्वाच्य सहात्मना या संगता मतिः सं (सहसं) मतिः, कोर्थः परोपदेशनिरपेक्षतया जातिस्मरणप्रतिभादिरूपया। ८. वही, पत्र ५६४। ६. समयसार ११११ : भदत्थो--शुद्ध नय। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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