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________________ उत्तरज्झयणाणि ४५६ अध्ययन २८ : श्लोक १४ टि. १६ आस्रव (२) सांपरायिक ऐयापथिक इन्द्रिय (५) कषाय (४) अव्रत (५) क्रिया (२५) संवर (आसव-निरोध) (१) सम्यक्त्व व्रत अप्रमाद अकपाय अयोग संवर (२) सर्वसंवर देशसंवर निर्जरा (तप) निर्जरा-तपस्या के द्वारा कर्मों का विच्छेद होने पर जो के साधन को भी निर्जरा कहा जाता है। उसके आधार पर आत्मा की निर्मलता होती है, उसे 'निर्जरा' कहते हैं। निर्जरा इसके बारह भेद होते हैं.--- निर्जरा वाह्य आभ्यन्तर अनशन ऊनोदरिका भिक्षाचरिका रसपरित्याग कायक्लेश प्रतिसंलीनता । T प्रायश्चित्त विनय वैयावृत्त्य स्वाध्याय ध्यान व्युत्सर्ग मोक्ष--जैन-दृष्टि के अनुसार 'समस्त कर्मों का क्षय करने पर विशाख को इस प्रकार उत्तर दियाकर अपने आत्म-स्वभाव में रमण करना' मोक्ष है। आत्मा का विशाख--आये। विद्या का क्या प्रतिभाग है? स्वभाव है-ज्ञान, दर्शन और पवित्रता। इन तीनों की पूर्णता धम्मदिन्ना---विमुक्ति। ही मोक्ष है। जैन-दृष्टि के अनुसार मुक्त-जीवों के वास-स्थान विशाख-विमुक्ति का क्या प्रतिभाग है ? को भी मोक्ष कहा गया है। सिद्धालय, मुक्ति, ईषत् प्राग्भारा धम्मदिन्ना-निर्वाण। पृथ्वी आदि उसके अपर नाम हैं। यह स्थान मनुष्य-क्षेत्र के विशाख-और निर्वाण का क्या प्रतिभाग है ? बराबर लम्बा-चौड़ा है। इसके मध्य भाग की मोटाई आठ धम्मदिन्ना-विशाख! ब्रह्मचर्य निर्वाण पर्यन्त है, योजन की है और अन्तिम भाग मक्खी के पंख से भी अधिक निर्वाण-परायण है, निर्वाण-पर्यवसान है।' पतला है और वह लोक के अग्रभाग में स्थित है। इसका भाट्टमत के अनुसार भोगायतन-शरीर, भोग-साधनआकार सीधे छत्ते जैसा है और यह श्वेत स्वर्णमयी है। इन्द्रियां और भोग्य-विषय-इन तीनों के आत्यन्तिक नाश को बौद्ध-दर्शन में तृष्णा के आत्यन्तिक क्षय को 'मोक्ष' कहा मोक्ष कहा गया है। अथवा 'प्रपञ्च सम्बन्ध के विलय' को है। धम्मदिन्ना नामक भिक्षुणी ने निर्वाण के सम्बन्ध में प्रश्न मोक्ष कहा गया है। मोक्षावस्था में जीव में न सुख है, न १. मज्झिमनिकाय, चूलवेदल्ल सुत्न (१९५४), पृ० १८.३। २. शास्त्रदीपिका, पृ० १२५ : विविधस्यापि बन्धस्यायन्तिको विलयो मोक्षः । Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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