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सामाचारी
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अध्ययन २६ : श्लोक १६,१८ टि० ११,१२
११. ज्येष्ठ (जेट्ठामूले)
-पुष्य १४ दिन-रात। प्रस्तुत श्लोक के 'जेट्ठामूले' शब्द में दो नक्षत्रों का योग अश्लेषा १५ दिन-रात। है-ज्येष्ठा और मूल। जो नक्षत्र चन्द्रमा को निशी के अन्त मघा १ दिन-रात। तक पहंचाता है, वह जब आकाश के चतुर्थ भाग में आता है. फाल्गुन मास को ६ नक्षत्रउस समय प्रथम पौरुषी का कालमान होता है। इसी प्रकार वह मघा १४ दिन-रात। नक्षत्र जब सम्पूर्ण क्षेत्र का अवगाहन कर लेता है, तब चारों पूर्वाफाल्गुनी १५ दिन-रात। प्रहर बीत जाते हैं।
उत्तराफाल्गुनी १ दिन-रात। जो नक्षत्र पूर्णिमा को उदित होता है और चन्द्रमा को चैत्र मास को ३ नक्षत्ररात्रि के अन्त तक पहुंचाता है, उसी नक्षत्र के नाम पर महीनों उत्तराफाल्गुनी १४ दिन-रात। के नाम रखे गए हैं। श्रावण और ज्येष्ठ मास इसके अपवाद हस्त १५ दिन-रात। हैं। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में इसका स्पष्ट व विस्तृत वर्णन है।
चित्रा १ दिन-रात। श्रावण मास को ४ नक्षत्र पार लगाते हैं
वैशाख मास को ३ नक्षत्रउत्तराषाढा नक्षत्र १४ दिन रात।
चित्रा १४ दिन-रात। अभिजित् नक्षत्र ७ दिन-रात।
स्वाति १५ दिन-रात। श्रवणा नक्षत्र ८ दिन-रात।
विशाखा १ दिन-रात। धनिष्ठा नक्षत्र १ दिन-रात।
ज्येष्ठ मास को ४ नक्षत्रभाद्रव मास को ४ नक्षत्र
विशाखा १४ दिन-रात। धनिष्ठा १५ दिन-रात।
अनुराधा ८ दिन-रात। शतभिषग् ७ दिन-रात।
ज्येष्ठा ७ दिन-रात। पूर्वाभाद्रपद ८ दिन-रात।
मूल १ दिन-रात। उत्तराभद्रपद १ दिन-रात।
आषाढ़ मास को ३ नक्षत्रआसोज मास को ३ नक्षत्र
मूल १७ दिन-रात। उत्तराभाद्रपद १४ दिन-रात।
पूर्वाषाढ़ा १५ दिन-रात। रेवति १५ दिन-रात।
उत्तराषाढा १ दिन-रात।' अश्विनी १ दिन-रात।
१२. नींद (निद्दमोक्ख) कार्तिक मास को ३ नक्षत्र
- इसका अर्थ है जो नींद अमुक समय तक निरुद्ध थी, अश्विनी १४ दिन-रात।
उसे मुक्त करना--नींद लेना, सोना। भरणी १५ दिन-रात।
प्राचीन विधि के अनुसार रात्री के पहले प्रहर में सभी कृत्तिका १ दिन-रात।
मुनि स्वाध्याय में बैठ जाते थे। जब दूसरा प्रहर प्रारम्भ होता मृगसिर मास को ३ नक्षत्र
तब अन्यान्य मुनि सो जाते, केवल गीतार्थ और वृषभ साधु कृत्तिका १४ दिन-रात।
स्वाध्याय करते रहते। वे पहले और दूसरे दोनों प्रहरों में रोहिणी १५ दिन-रात ।
स्वाध्यायरत रहते थे। दूसरा प्रहर अतिक्रान्त होने तथा तीसरे मृगसिर १ दिन-रात।
प्रहर के प्रारम्भ में वे ही काल की प्रतिलेखना कर उपाध्याय पौष मास को ४ नक्षत्र
को ज्ञापित कर आचार्य को जगाते। आचार्य स्वाध्याय में लग मृगसिर १४ दिन-रात।
जाते और वे गीतार्थ तथा वृषभ मुनि सो जाते। तीसरे प्रहर के आर्द्रा ८ दिन-रात।
अतिक्रान्त होने पर तथा चौथे प्रहर के प्रारम्भ होने पर पुनर्वसु ७ दिन-रात।
आचार्य सो जाते और शेष सोए हुए सभी साधुओं को जागृत पुष्य १ दिन-रात।
कर दिया जाता और वे सभी वैरात्रिक स्वाध्याय में रत हो माघ मास को ३ नक्षत्र
जाते।
१. जंबुद्दीवपण्णत्ती, वक्ष ७ सूत्र १५६-१६७। २. बृहद्वृत्ति, पत्र ४३८ : निद्राया मोक्षः-पूर्वनिरुद्धायामुत्कलना निद्रामोक्षः
स्वाप इत्यर्थः।
३. ओघनियुक्ति, गाथा ६६१ :
सव्येवि पढमजामे दोन्नि उ वसभाण आइमा जामा। तइओ होइ गुरूणं, चउत्थओ होइ सव्वेसिं ।। -दोणीयावृत्ति, पत्र ४६४, ४६५।
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