SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरज्झयणाणि ४१२ अध्ययन २६ : श्लोक ७-१५ ७. अब्भुट्ठाणं गुरुपूया अच्छणे उवसंपदा। एवं दुपंचसंजुत्ता सामायारी पवेइया ।। अभ्युत्थानं गुरुपूजायां आसने उपसम्पद् । एवं द्विपंचसंयुक्ता सामाचारी प्रवेदिता।। (६) गुरु-पूजा (आचार्य, ग्लान, बाल आदि साधुओं) के लिए अभ्युत्थान करे-आहार आदि लाए। (१०) दूसरे गण के आचार्य आदि के पास रहने के लिए उपसंपदा ले मर्यादित काल तक उनका शिष्यत्व स्वीकार करे—इस प्रकार दस-विध समाचारी का निरूपण किया गया है।' पूर्वस्मिन् चतुर्भागे आदित्ये समुत्थिते। भाण्डकं प्रतिलिख्य वन्दित्वा च ततो गुरुम्।। सूर्य के उदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में भाण्डु-उपकरणों की प्रतिलेखना करे। तदनन्तर गुरु की वन्दना कर ८. पुव्विल्लंमि चउब्भाए आइच्चमि समुट्ठिए। भंडयं पडिलेहित्ता वंदित्ता य तओ गुरूं।। ६. पुच्छेज्जा पंजलिउडो किं कायव्वं मए इहं ? | इच्छं निओइउं भंते ! वेयावच्चे य सज्झाए।। पृच्छेत् प्रांजलिपुटः किं कर्त्तव्यं मया इह ?। इच्छामि नियोजयितुं भदन्त ! वैयावृत्त्ये वा स्वाध्याये।। हाथ जोड़ कर पूछे-अब मुझे क्या करना चाहिए? भन्ते ! मैं चाहता हूं कि आप मुझे वैयावृत्त्य या स्वाध्याय में से किसी एक कार्य में नियुक्त करें। १०.वेयावच्चे निउत्तेण कायव्वं अगिलायओ। सज्झाए वा निउत्तेणं सव्वदुक्खविमोक्खणे।। वैयावृत्त्ये नियुक्तेन कर्त्तव्यमग्लान्या स्वाध्याये वा नियुक्तेन सर्वदुःखविमोक्षणे।। वैयावृत्त्य में नियुक्त किए जाने पर अग्लान भाव से वैयावृत्त्य करे अथवा सर्व दुःखों से मुक्त करने वाले स्वाध्याय में नियुक्त किए जाने पर अग्लान भाव से स्वाध्याय करे। विचक्षण भिक्षु दिन के चार भाग करे। उन चारों भागों में उत्तर-गुणों (स्वाध्याय आदि) की आराधना ११. दिवसस्स चउरो भागे दिवसस्य चतुरो भागान् कुजजा भिक्खू वियक्खणो।। कुर्याद् भिक्षुर्विचक्षणः। तओ उत्तरगुणे कुज्जा तत उत्तरगुणान् कुर्यात् दिणभागेसु चउसु वि।। दिनभागेषु चतुर्ध्वपि।। करे। १२. पढमं पोरिंसि सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए सज्झायं ।। प्रथमां पौरुषी स्वाध्यायं द्वितीयां ध्यानं ध्यायति। तृतीयायां भिक्षाचाँ पुनश्चतुर्थ्यां स्वाध्यायम्।। प्रथम प्रहर में स्वाध्याय और दूसरे में ध्यान करे। तीसरे में भिक्षाचरी और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे। १३. आसाढे मासे दुपया पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएसु मासेसु तिपया हवइ पोरिसी।। आषाढ़े मासे द्विपदा पौषे मासे चतुष्पदा। चैत्राश्विनयोर्मासयोः त्रिपदा भवति पौरुषी।। आषाढ़ मास में दो पाद प्रमाण, पौष मास में चार पाद प्रमाण, चैत्र तथा आश्विन मास में तीन पाद प्रमाण पौरुषी होती है। १४. अंगुलं सत्तरत्तेणं पक्खेण य दुअंगुलं। वड्डए हायए वावि मासेणं चउरंगुलं ।। अंगुलं सप्तरात्रेण पक्षेण च द्वयंगुलम्। वर्धते हीयते वापि मासेन चतुरंगुलम् ।। सात दिन रात में एक अंगुल, पक्ष में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुल वृद्धि और हानि (पौरुषी के कालमान में) होती है। श्रावण मास से पौष मास तक वृद्धि और माघ से आषाढ़ तक हानि होती है। १५. आसाढबहुलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य। फग्गुणवइसाहेसु य नायव्वा ओमरत्ताओ।। आषाढबहुलपक्षे भाद्रपदे कार्तिके च पौषे च।। फाल्गुनवैशाखयोश्च ज्ञातव्या अवम-रात्रयः ।। आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख—इनके कृष्ण-पक्ष में एक-एक अहोरात्र (तिथि) का क्षय होता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy