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मूल
१. अद्र पवयणमायाओ
समिई गुत्ती तहेव य । पंचैव य समिईओ तओ गुत्तीओ आहिया
२. इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इ मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अट्ठमा ।। ३. एयाओ अट्ठ समिईओ समासेण वियाहिया । दुवालसंग जिणक्खाय मायं जत्थ उ पवयणं ।। ४. आलंबणेण कालेण
मग्गेण जयणाइ य । चउकारणपरिसुद्धं संजए इरियं रिए । । ५. तत्थ आलंबणं नाणं दंसणं चरणं तहा। काले य दिवसे दुत्ते मग्गे उप्पहवज्जिए । । ६. दव्वओ खेत्तओ चेव
८.
७. दव्यओ चक्खुसा पेहे जुगमित्तं च खेत्तओ कालओ जाव रीएज्जा उवउत्ते य भावओ ।।
चउविंसइमं अज्झयणं चौवीसवां अध्ययन
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पवयण - माया प्रवचन - माता
कालओ भावओ तहा। जयणा चउव्विहा वृत्ता तं मे कित्तयओ सुण ।।
इंदियत्थे विवज्जित्ता संज्झायं चेव पंचहा । तमुत्ती तत्पुरक्कारे उवउत्ते इरियं रिए । ।
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संस्कृत छाया
अष्टौ प्रवचनमातरः समिती गुप्तयस्तचैव च पंचैव य समितयः तिम्रो गुप्तय आख्याताः । '
ईर्याभाषैषणादाने
उच्चारे समितिरिति । मनोगुप्तिर्वयोगुप्तिः कायगुप्तिश्वाष्टमी ||
एता अष्टी समितयः समासेन व्याख्याताः । द्वादशाङ्गं जिनाख्यातं मातं यत्र तु प्रवचनम् ।। आलम्बनेन कालेन मार्गेण यतनया च । चतुष्कारणपरिशुद्ध संयत ईय रीयेत । तत्रालम्बनं ज्ञानं दर्शनं चरणं तथा । कालश्च दिवस उक्तः मार्ग उत्पथवर्जितः ।।
दव्यतः क्षेत्रतश्चैव कालतो भावतस्तथा यतना चतुर्विधा उक्ता तां मे कीर्तयतः शृणु ।।
दव्यतश्चक्षुषा प्रेक्षेत युगमा व क्षेत्रतः। कालतो यावद्रीयेत उपयुक्तश्च भावतः ।। इन्द्रियार्थान विवर्ज्य स्वाध्यायं चैव पंचधा । तन्मूर्त्तिः तत्पुरस्कारः उपयुक्त ईय रीयेत ।।
हिन्दी अनुवाद
आठ प्रवचन-माताएं' हैं समिति और गुप्ति । समितियां पांच और गुप्तियां तीन आख्यात हैं।
ईय समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान-समिति, उच्चार समिति, मनो-गुप्ति, वचन- गुप्ति और आठवीं काय गुप्ति है ।
ये आठ समितियां संक्षेप में कही गई हैं। इनमें जिन भाषित द्वादशाङ्ग-रूप प्रवचवन समाया हुआ है।
संयमी मुनि आलम्बन, काल, मार्ग और यतनाइन चार कारणों से परिशुद्ध ईर्या (गति) से चले ।
उनमें ईर्ष्या का आलम्बन ज्ञान, दर्शन और चारित्र है। उनका काल दिवस है और उत्पथ का वर्जन करना उसका मार्ग है।
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द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से यतना चार प्रकार की कही गई है। वह मैं कह रहा हूं, सुनो।
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द्रव्य से आंखों से देखे। क्षेत्र से युग मात्र (गाड़ी के जुए जितनी) * भूमि को देखे। काल से जब तक चले तब तक देखे । भाव से उपयुक्त (गमन में दत्तचित्त रहे।
इन्द्रियों के विषयों और पांच प्रकार के स्वाध्याय का वर्जन कर, ईर्या में तन्मय हो, उसे प्रमुख बना उपयोग पूर्वक चले।"
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