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________________ उत्तरज्झयणाणि ६६. भावनाओं के द्वारा (भावणाहि य सुद्धाहिं ) वृत्तिकार ने भावना शब्द का सम्बन्ध महाव्रत की पच्चीस भावनाओं तथा अनित्य आदि बारह अनुप्रेक्षाओं के साथ स्थापित किया है।' ध्यान शतक में चार भावनाओं का उल्लेख मिलता है। १. ज्ञान भावना २. दर्शन भावना ३२८ अध्ययन १६ : श्लोक ६४-६८ टि० ६६-६६ है— मृगा रानी का । किन्तु छन्द की दृष्टि से एकार को इकार किया गया है। ६८. सुनकर (निसम्म) श्रवण और निशमन - दोनों शब्द सुनने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। दोनों के तात्पर्यार्थ में अन्तर है । कानों से शब्द मात्र को ग्रहण करना श्रवण है। गहराई से सुनना, अवधारण करना निशमन है। ३. चारित्र भावना ४. वैराग्य भावना सम्भावना की जा सकती है कि इस भावना शब्द का इस श्लोक में निर्दिष्ट ज्ञान, दर्शन और चारित्र के साथ सम्बन्ध है । ६७. मृगापुत्र (मियाइपुत्तस्स) Jain Education International ६९. निर्वाण के गुणों को प्राप्त कराने वाली (निव्वाणगुणावह) निर्वाण के चार गुण हैं—अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तशक्ति और अनन्त आनन्द-सुख । जो इन चारों की प्राप्ति मियाइ–—यहां मियाए पाठ होना चाहिए था। इसका अर्थ कराती है वह निर्वाणगुणावहा । २. ध्यानशतक, श्लोक ३० । १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४६५ 'भावनाभिः' महाव्रतसम्बन्धिनीभिर्वक्ष्यमाणाभिरनित्यत्वादिविषयाभिर्वा । 'विशुद्धिभि' निदानादिदोषरहिताभिर्भाववयित्वा - ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ४६६ । तन्मयतां नीत्वा 'अप्पयं' ति आत्मानम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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