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________________ उत्तरज्झयणाणि ३०२ अध्ययन १८ : श्लोक ५३ टि० ३४, ३५ (१) अतिशय निदान (हेतु) युक्त। (२) अतिशय निदान (कर्ममल शोधन) में क्षम।' चूर्णिकार ने 'अनियाणखम' पद मानकर अनिदान का अर्थ अबंध किया है। ३४. संगों से (संग) जिससे कर्म का बंधन होता है, उसे 'संग' कहते हैं। वह दो प्रकार का है-द्रव्यसंग और भावसंग। द्रव्यतः संग पदार्थ होते हैं और भावतः संग होते हैं एकांतवादी दर्शन। ३५. (श्लोक २०-५३) इन चौंतीस श्लोकों में क्षत्रिय और राजर्षि संजय के बीच हए वार्तालाप का संकलन है। क्षत्रिय ने बिना पूछे ही अपना परिचय दिया और फिर अनेक राजाओं के उदाहरणों से संजय को समझाया। अन्त में क्षत्रिय वहां से चलकर अपने विवक्षित स्थान पर आ गए। राजर्षि संजय तप के आचरण द्वारा आस्रवों को क्षीण कर मुक्त हो गए। १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४४६ : अतिशयेन निदानैः-कारणैः, कोऽर्थः?- हेतुभिर्न तु परप्रत्ययेनेव, क्षमा-युक्ताऽत्यन्तनिदानक्षमा, यद्वा निदानं--- कर्ममलशोधनं तस्मिन् क्षमाः-समर्थाः । २. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २५०। ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ४४६-४५० : सजन्ति कर्मणा संबध्यन्ते जन्तव एभिरिति संगाः-द्रव्यतो द्रविणादयो भावतस्तु मिथ्यात्वरूपत्वादेत एव क्रियादिवादाः । ४. बृहद्वृत्ति, पत्र ४५० : इत्थं तमनुशास्य गतो विवक्षितं स्थानं क्षत्रियः । ५. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ४०४ : काऊण तवच्चरणं बहूणि वासाणि सो धुयकिलेसो। तं ठाणं संपत्तो जं संपत्ता न सोयंति।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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