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________________ इषुकारीय २४१ अध्ययन १४ : श्लोक ८-१६ ५. अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं अथ तातकस्तत्र मुन्योस्तयोः उनके पिता ने उन कुमार मुनियों की तपस्या में तवस्स वाघायकरं वयासी। तपसो व्याघातकरमवादीत्। बाधा उत्पन्न करने वाली बातें कहीं-'पुत्रो ! वेदों को इमं वयं वेयविओ वयंति इमां वाचं वेदविदो वदन्ति जानने वाले इस प्रकार कहते हैं कि जिनको पुत्र नहीं जहा न होई असुयाण लोगो।। यथा न भवत्यसुतानां लोकः ।। होता उनकी गति नहीं होती।' ६. अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे अधीत्य वेदान् परिवेष्य विप्रान् “पुत्रो! इसलिए वेदों को पढ़ो। ब्राह्मणों को भोजन पुत्ते पडिट्ठप्प गिहंसि जाया!। पुत्रान् प्रतिष्ठाप्य गृहे जातौ !। कराओ। स्त्रियों के साथ भोग भोगो। पुत्रों को उत्पन्न भोच्चाण भोए सह इत्थियाहिं भुक्वा भोगान् सह स्त्रीभिः करो। उनका विवाह कर, घर का भार सौंप फिर आरण्णगा होह मुणी पसत्था।। आरण्यको भवतं मुनी प्रशस्तौ।। अरण्यवासी प्रशस्त मुनि हो जाना।"१० १०. सोयरिंगणा आयगुणिंधणेणं शोकाग्निना आत्मगुणेन्धनेन दोनों कुमारों ने सोच-विचारपूर्वक उस पुरोहित को-- मोहाणिला पज्जलणाहिएणं।। मोहानिलात् प्रज्वलनाधिकेन। जिसका मन और शरीर आत्मगण रूपी इन्धन और संतत्तभावं परितप्पमाणं संतप्तभावं परितप्यमानं मोह रूपी पवन से अत्यन्त प्रज्वलित शोकाग्नि से लोलुप्पमाणं बहुहा बहु च।। लोलुप्यमानं बहुधा बहुं च।। संतप्त और परितप्त हो रहा था", जिसका हृदय वियोग की आशंका से अतिशय५२ छिन्न हो रहा था, ११. पुरोहियं तं कमसोऽणुणतं पुरोहितं तं क्रमशोऽनुनयन्तं जो एक-एक कर अपने अभिप्राय अपने पुत्रों को निमंतयंतं च सुए धणेणं। निमंत्रयन्तं च सुती धनेन। समझा रहा था और उन्हें धन और क्रमप्राप्त कामभोगों जहक्कम कामगुणेहि चेव यथाक्रम कामगुणैश्चैव का निमंत्रण दे रहा था ये वाक्य कहेकुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं ।। कुमारको तौ प्रसमीक्ष्य वाक्यम् ।। १२.वेया अहीया न भवंति ताणं वेदा अधीता न भवन्ति त्राणं "वेद पढ़ने पर भी वे त्राण नहीं होते। ब्राह्मणों को भुत्ता दिया निति तमं तमेणं। भोजिता द्विजा नयन्ति तमस्तमसि। भोजन कराने पर वे अन्धकारमय नरक में ले जाते जाया य पुत्ता न हवंति ताणं जाताश्च पुत्रा न भवन्ति त्राणं हैं। औरस पुत्र भी त्राण नहीं होते।" इसलिए आपने को णाम ते अणुमन्नेज्ज एयं ।। को नाम तवानुमन्येतैतत् ।। कहा उसका अनुमोदन कौन कर सकता है ?" १३. खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा क्षणमात्रसौख्या बहुकालदुःखाः “ये कामभोग क्षण भर सुख और चिरकाल दुःख पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा। प्रकामदुःखा अनिकामसौख्याः।। देने वाले हैं, बहुत दुःख और थोड़ा सुख देने वाले संसारमोक्खस्स विपक्खभूया संसारमोक्षस्य विपक्षभूताः हैं, संसार-मुक्ति के विरोधी हैं और अनर्थों की खान खाणी अणत्थाण उ कामभोगा। खानिरनर्थानां तु कामभोगाः।। १४. परिव्ययंते अणियत्तकामे परिव्रजन्ननिवृत्तकामः "जिसे कामनाओं से मुक्ति नहीं मिली वह पुरुष अहो य राओ परितप्पमाणे। अनि च रात्री परितप्यमानः।। अतृप्ति की अग्नि से संतप्त होकर दिन-रात परिभ्रमण अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे अन्यप्रमत्तो धनमेषयन् करता है। दूसरों के लिए प्रमत्त होकर" धन की पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च।। प्राप्नोति मृत्युं पुरुषो जरां च।।। खोज में लगा हुआ वह जरा और मृत्यु को प्राप्त होता १५. इमं च मे अस्थि इमं च नत्थि इदं च मेऽस्ति इदं च नास्ति "यह मेरे पास है और यह नहीं है, यह मुझे करना इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं। इदं च मे कृत्यमिदमकृत्यम्। .. है और यह नहीं करना है-इस प्रकार वृथा बकवास तं एवमेवं लालप्पमाणं तमेवमेवं लालप्यमानं करते हुए पुरुष को उठाने वाला काल'६ उठा लेता है। हरा हरंति त्ति कहं पमाए?।। हरा हरन्तीति कथ प्रमादः।।। हरा हरन्तीति कथं प्रमादः?।। इस स्थिति में प्रमाद कैसे किया जाए ?" इस स्थिति में प्रमा १६.धणं पभूयं सह इत्थियाहिं धनं प्रभूतं सह स्त्रीभिः "जिसके लिए लोग तप किया करते हैं वह सब सयणा तहा कामगुणा पगामा। स्वजनास्तथा कामगुणाः प्रकामाः। कुछ–प्रचुर धन, स्त्रियां, स्वजन और इन्द्रियों के तवं कए तप्पइ जस्स लोगो तपः कृते तप्यति यस्य लोकः विषय तुम्हें यहीं प्राप्त हैं फिर किसलिए तुम श्रमण तं सव्व साहीणमिहेव तुम।। तत् सर्वं स्वाधीनमिहैव युवयोः।। होना चाहते हो?"-पिता ने कहा। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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