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अध्ययन १३ : श्लोक ३५
उत्तरज्झयणाणि
२३२ ३५.चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो चित्रोपि कामेभ्यो विरक्तकामः
उदग्गचारित्ततवो महेसो। उदग्रचारित्रतपा महर्षिः। अणुत्तरं संजम पालइत्ता अनुत्तरं संयम पालयित्वा अणुत्तरं सिद्धिगई गओ।। अनुत्तरां सिद्धिगतिं गतः ।।
कामना से विरक्त और उदात्त चारित्र-तप वाला महर्षि चित्र अनुत्तर संयम का पालन कर अनुत्तर सिद्धिगति को प्राप्त हुआ।
—त्ति बेमि।
--इति ब्रवीमि।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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