SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरिकेशीय २११ अध्ययन १२ : श्लोक १८-२६ १८.के एत्थ खत्ता उवजोइया वा केऽत्र क्षत्रा उपज्योतिषा वा (सोमदेव-) “यहां कौन है क्षत्रिय,२६ रसोइया,२९, अज्झावया वा सह खंडिएहिं। अध्यापका वा सह खण्डिकैः । अध्यापक या छात्र, जो डण्डे से पीट, एड़ी का एयं दंडेण फलेण हंता एनं दण्डेन फलेन हत्वा प्रहार कर,२६ गलहत्था दे इस निर्ग्रन्थ को यहां से कंठम्मि घेतूण खलेज्ज जो णं?।। कण्ठे गृहीत्वा अपसारयेयुः?|| बाहर निकाले ?" १६.अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता अध्यापकानां वचनं श्रुत्वा अध्यापकों का वचन सुनकर बहुत से कुमार उधर उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा। उद्धावितास्तत्र बहवः कुमाराः।। दौड़े। वहां आ डण्डों, बेतों और चाबुकों से उस ऋषि दंडेहि वित्तेहि कसेहि चेव दण्डैत्रैः कशैश्चैव को पीटने लगे। समागया तं इसि तालयंति।। समागतास्तमृर्षि ताडयन्ति।। २०.रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया राज्ञस्तत्र कौशलिकस्य दुहिता राजा कौशलिक की सुन्दर पुत्री भद्रा यज्ञ-मण्डप में भद्द त्ति नामेण अणिंदियंगी। भद्रेति नाम्ना अनिन्दिताङ्गी। मुनि को प्रताड़ित होते देख क्रुद्ध कुमारों को शांत तं पासिया संजय हम्ममाणं तं दृष्ट्वा संयतं हन्यमानं करने लगी। कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ।। क्रुद्धान् कुमारान् परिनिर्वापयति।। २१.देवाभिओगेण निओइएणं देवाभियोगेन नियोजितेन (भद्रा-) “राजाओं और इन्द्रों द्वारा पूजित यह वह दिन्ना मु रन्ना मणसा न झाया। दत्ताऽस्मि राज्ञा मनसा न ध्याता। ऋषि हैं, जिसने मेरा त्याग किया। देवता के अभियोग नरिंददेविंदऽभिवंदिएणं नरेन्द्रदेवेन्द्राभिवन्दितेन से प्रेरित होकर राजा द्वारा मैं दी गई, किन्तु जिसने जेणम्हि वंता इसिणा स एसो।। येनास्मि वान्ता ऋषिणा स एषः।। मुझे मन से भी नहीं चाहा।" २२.एसो हु सो उग्गतवो महप्पा एष खलु स उग्रतपा महात्मा _ “यह वही उग्र तपस्वी, महात्मा, जितेन्द्रिय, संयमी जिइंदिओ संजओ बंभयारी। जितेन्द्रियः संयतो ब्रह्मचारी। और ब्रह्मचारी है, जिसने मुझे स्वयं मेरे पिता राजा जो मे तया नेच्छा दिज्जमाणिं यो मां तदा नेच्छति दीयमानां कौशलिक द्वारा दिए जाने पर भी नहीं चाहा।" पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना।। पित्रा स्वयं कौशलिकेन राजा।। २३.महाजसो एस महाणुभागो महायशा एष महानुभागः “यह महान् यशस्वी है। महान् अनुभाग (अचिन्त्य घोरव्वओ घोरपरक्कमो य। घोरव्रतो घोरपराक्रमश्च । शक्ति) से सम्पन्न है। घोर व्रती है। घोर पराक्रमी मा एयं हीलह अहीलणिज्जं मैनं हीलयताहीलनीयं है। इसकी अवहेलना मत करो, यह अवहेलनीय मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा।। मा सर्वान तेजसा भवतो निर्धाक्षीतः।। नहीं है। कहीं यह अपने तेज से तुम लोगों को भस्मसात् न कर डाले?" २४.एयाई तीसे वयणाइ सोच्चा एतानि तस्या वचनानि श्रुत्वा सोमदेव पुरोहित की पत्नी भद्रा के सुभाषित वचनों को पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाई। पल्या भद्रायाः सुभाषितानि। सुनकर यक्षों ने ऋषि का वैयापृत्य' (परिचर्या) करने इसिस्स वेयावडियट्टयाए ऋषेयापृत्यार्थं के लिए कुमारों को भूमि पर गिरा दिया। जक्खा कुमारे विणिवाडयंति॥ यक्षाः कुमारान् विनिपातयन्ति।। २५.ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे ते घोररूपाः स्थिता अन्तरिक्षे घोर रूप और रौद्र भाव वाले यक्ष आकाश में स्थिर असुरा तहिं तं जणं तालयंति। असुरास्तत्र तं जनं ताडयन्ति। हो कर उन छात्रों को मारने लगे। उनके शरीरों को ते भिन्नदेहे रुहिरं वमते तान् भिन्नदेहान् रुधिरं वमतः क्षत-विक्षत और उन्हें रुधिर का वमन करते देख पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो।। दृष्ट्वा भद्रेदमाह भूयः ।। भद्रा फिर कहने लगी-- २६.गिरि नहेहिं खणह गिरि नखैः खनथ “जो तुम इस भिक्षु का अपमान कर रहे हो, वे तुम अयं दंतेहिं खायह। अयो दन्तैः खादथ। नखों से पर्वत खोद रहे हो, दांतों से लोहे को चबा जायतेयं पाएहि हणह जाततेजसं पादैर्हथ रहे हो और पैरों से अग्नि को प्रताड़ित कर रहे जे भिक्खुं अवमन्नह ।। ये भिक्षुमवमन्यध्वे।। हो।" २४.एयाई भाइ सुहालिए Jain Education Intemational ation Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy