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बारसमं अज्झयणं : बारहवां अध्ययन
हरिएसिज्जं : हरिकेशीय
२.
मूल संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद १. सोवागकुलसंभूओ श्वपाककुलसंभूतः
चाण्डाल-कुल' में उत्पन्न, ज्ञान आदि उत्तम गुणों को गुणुत्तरधरो मुणी। उत्तरगुणधरो मुनिः।
धारणा करने वाला, धर्म-अधर्म का मनन करने हरिएसबलो नाम हरिकेशबलो नाम
वाला हरिकेशबल नामक जितेन्द्रिय भिक्षु था। आसि भिक्खू जिइंदिओ।। आसीद् भिक्षुर्जितेन्द्रियः ।। इरिएसणभासाए ईयैषणाभाषायां
वह ईर्या, एषणा, भाषा, उच्चार, आदाननिक्षेपउच्चारसमिईसु य। उच्चारसमिती च।
इन समितियों में सावधान था, संयमी और समाधिस्थ जओ आयाणनिक्खेवे यत आदाननिक्षेपे
था। संजओ सुसमाहिओ।। संयतः सुसमाहितः।। ३. मणगुत्तो वयगुत्तो
मनोगुप्तो वचोगुप्तः
वह मन, वचन और काया से गुप्त और जितेन्द्रिय कायगत्तो जिइंदिओ। कायगुप्तो जितेन्द्रियः।
था। वह भिक्षा लेने के लिए यज्ञ-मण्डप में गया, जहां भिक्खट्ठा बंभइज्जम्मि भिक्षार्थं ब्रह्मज्ये
ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे। जन्नवाडं उवट्ठिओ।। यज्ञवाटे उपस्थितः।। ४. तं पासिऊणमेजंतं
तं दृष्ट्वा आयन्तं
वह तप से कृश हो गया था। उसके उपधि और तवेण परिसोसियं। तपसा परिशोषितम्।
उपकरण प्रांत (जीर्ण और मलिन) थे। उसे आते पंतोवहिउवगरणं प्रान्त्योपध्युपकरणं
देख, वे अनार्य (ब्राह्मण) हंसे। उवहसंति अणारिया।। उपहसत्यनार्याः ।। ५. जाईमयपडिथद्धा
जातिमदप्रतिस्तब्धाः
जातिमद से मत्त, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी हिंसगा अजिइंदिया। हिंसका अजितेन्द्रियाः।
और अज्ञानी ब्राह्मणों ने परस्पर इस प्रकार कहा--- अबंभचारिणो बाला अब्रह्मचारिणो बालाः
इमं वयणमब्बवी।। इदं वचनमब्रुवन् ।। ६. कयरे आगच्छइ दित्तरूवे कतर आगच्छति दृप्तरूपः वीभत्स रूप वाला, काला, विकराल, बड़ी नाक
काले विगराले फोक्कनासे। कालो विकरालः 'फोक्क' नासः। वाला, अधनंगा, पांशु-पिशाच (चुड़ेल) सा, गले में ओमचेलए पंसुपिसायभूए अवमचेलकः पाशुपिशाचभूतः संकर-दूष्य (उकुरडी से उठाया हुआ चिथड़ा) डाले
संकरदूसं परिहरिय कंठे?।। संकरदूष्यं परिधाय कण्ठे ?।। हुए वह कौन आ रहा है? ७. कयरे तुम इय अदंसणिज्जे कतरस्त्वमित्यदर्शनीयः
ओ अदर्शनीय मूर्ति ! तुम कौन हो? किस आशा से काए व आसा इहमागओ सि। कया वाऽऽशयेहागतोऽसि ? यहां आए हो? अधनंगे तुम पांशु-पिशाच (चुड़ेल) से ओमचेलगा पंसुपिसायभूया अवमचेलकः पांशुपिशाचभूतः लग रहे हो। जाओ, आंखों से परे चले जाओ" ! यहां गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओसि?।। गच्छ ‘खलाहि' किमिह स्थितोसि?| क्यों खड़े हो? जक्खो तहिं तिंदुयरुक्खवासी यक्षस्तस्मिन् तिन्दुकरूक्षवासी उस समय महामुनि हरिकेशबल की अनुकंपा करने अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स। अनुकम्पकस्तस्य महामुनेः । वाला तिन्दुक (आबनूस) वृक्ष का वासी यक्ष अपने पच्छायइत्ता नियगं सरीरं प्रच्छाद्य निजकं शरीरं
शरीर का गोपन कर मुनि के शरीर में प्रवेश कर इस इमाइं वयणाइमुदाहरित्था।। इमानि वचनानि उदाहार्षीत्।। प्रकार बोला
८.
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