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बहुश्रुतपूजा
खट्टा होता है।"
२३. बहुश्रुत (बहुस्सुए)
बहुश्रुत शब्द जैन आगमों में बहुत प्रचलित है। श्रुत का अर्थ है— ज्ञान। जिसका श्रुत व्यापक और विशाल होता है उसे बहुश्रुत कहा जाता है । व्याख्या साहित्य में इसकी निश्चित परिभाषाएं मिलती हैं। बृहत्कल्प भाष्य के अनुसार बहुश्रुत तीन प्रकार के होते हैं
१. जघन्य बहुश्रुत — निशीथ का ज्ञाता ।
२. मध्यम बहुश्रुत ——कल्प और व्यवहार का ज्ञाता । ३. उत्कृष्ट बहुश्रुत — नौवें और दशवें पूर्व का ज्ञाता । निशीथ चूर्णि का मत इससे बहुत भिन्न है। उसके अनुसार उत्कृष्ट बहुश्रुत वह होता है जो चतुर्दशपूर्वर हो।" धवला में बारह अंगों के धारक को बहुश्रुत कहा गया है।
प्रस्तुत अध्ययन में बहुश्रुत के व्यक्तित्व का सर्वांगीण परिचय उपलब्ध है । वह केवल ज्ञानी ही नहीं होता, व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं से संपन्न होता है। यहां उसकी सोलह विशेषताएं बतलाई गई हैं। उनका निर्देश काव्य की भाषा में है । प्रश्नव्याकरण में निरूपित मुनि की विशेषताओं के साथ इनका तुलनात्मक अध्ययन बहुत ज्ञानवर्धक हो सकता है।
१. निर्मलता—शंख में निहित दूध की उपमा बहुश्रुत की निर्मल आभा की द्योतक है। प्रश्नव्याकरण में मुनि को शंख की भांति निरंजन – राग-द्वेष और मोह से मुक्त बतलाया गया है। "
२. जागरूकता - जैसे आकीर्ण या भद्र अश्व चाबुक को देखते ही वेगवान् हो जाता है, वैसे ही बहुश्रुत निरन्तर
जागरूक रहता है। यह तात्पर्यार्थ उत्तराध्ययन १।१२ में खोजा जा सकता है। धम्मपद में भी इस अर्थ के द्योतक दो श्लोक मिलते हैं।"
३. शौर्य - बहुश्रुत परिस्थितियों से हार नहीं मानता। वह योद्धा की भांति पराक्रमी होता है।
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४. अप्रतिहत- बहुश्रुत हाथी की भांति अप्रतिहत होता है। प्रश्नव्याकरण में मुनि का एक विशेषण है— हाथी की भां शौण्डीर -- समर्थ या बलवान् ।
9. (क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० १६८ : 'संखिभि' संखभायणे पयं खीरं णिसितं ठवियं न्यस्तमित्यर्थः, उभयतो दुहतो, संखो खीरं च, अहवा तओ खीरं व, खीरं संखे ण परिस्सयति ण य अंबिलं भवति ।
(ख) बृहद्वृत्ति, पत्र ३४८ : 'दुहओवि' त्ति द्वाभ्यां प्रकाराभ्यां द्विधा, न शुद्धतादिना स्वसम्बन्धिगुणलक्षणेनैकेनैव प्रकारेण, किन्तु स्वसम्बन्ध्याश्रयसम्बन्धिगुणद्वयलक्षणेन प्रकारद्वयेनापीत्यपिशब्दार्थः, 'विराजते' शोभते, तत्र हि न तत् कलुषीभवति, न चाम्लतां भजते, नापि च परिस्रवति ।
२. देखें इसी अध्ययन का आमुख |
३. बृहत्कल्पभाष्य, गाथा ४०२ :
तिविहो बहुस्सुओ खलु, जहण्णाओ मज्झिमो उ उक्कोसो। आयारपकप्पे कप्प नवम दसमे य उक्कोसो।।
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अध्ययन ११ : श्लोक १५ टि० २३
५. भार- निर्वाहक- बहुश्रुत अपने दायित्व का वृषभ की तरह भलीभांति निर्वाह करता है। प्रश्नव्याकरण में मुनि की प्राणवान् ऋषभ से तुलना की गई है।
६. दुष्षधर्ष - बहुश्रुत सिंह की भांति दुष्प्रधर्षअनाक्रमणीय होता है। अन्यदर्शनी उस पर वैचारिक आक्रमण नहीं कर सकते । प्रश्नव्याकरण में मुनि के लिए भी इस उपमा का प्रयोग किया गया है।"
७. अपराजेय - बहुश्रुत वासुदेव की भांति अपराजेय होता है।
८. लब्धिसंपन्न- -जैसे चक्रवर्ती ऋद्धिसंपन्न होता है, वैसे ही बहुश्रुत भी योगज विभूतियों से संपन्न होता है ।
९. आधिपत्य या स्वामित्व जैसे इन्द्र देवों का अधिपति होता है, वैसे ही बहुश्रुत भी दिव्य शक्तियों का अधिपति होता है।
१०. तेजस्वी - बहुश्रुत सूर्य की भांति तेज से दीप्त होता है। प्रश्नव्याकरण में मुनि का एक विशेषण है— सूर्य की भांति तेजस्वी ।"
११. कलाओं से परिपूर्ण और सौम्यदर्शन — बहुश्रुत पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति समस्त कलाओं से परिपूर्ण होता है। उसका दर्शन सौम्यभाव युक्त होता है। प्रश्नव्याकरण में मुनि का एक विशेषण है—चन्द्रमा की भांति सौम्य ।२
१२. संपन्न बहुश्रुत कोष्ठागार की भांति श्रुत से परिपूर्ण होता है।
१३. आदर्श - बहुश्रुत जम्बू वृक्ष की भांति श्रेष्ठ होता है, आदर्श होता है। उसका ज्ञान संजीवनी का काम करता है, जैसे जम्बू वृक्ष का फल ।
१४. ज्ञान की निर्मलता - बहुश्रुत निर्मल जलवाली शीता नदी की भांति निर्मल ज्ञान से युक्त होता है।
१५. अडोल और दीप्तिमान् जैसे मंदर पर्वत अडोल और नानाविध वनस्पतियों से दीप्त होता है, वैसे ही बहुश्रुत ज्ञान से अत्यन्त स्थिर और ज्ञान के प्रकाश से दीप्त होता है ।
४. देखें—इसी अध्ययन का आमुख |
५.
६.
७.
धवला ८ ३ १४१ बारसंगपारया बहुसुदा णाम ।
प्रश्नव्याकरण १० 199 संखे विव निरंगणे विगय-राग-दोस मोहे।
धम्मपद १०1१५, १६ :
हरीनिसेधो पुरिसो कोचि लोकस्मि विज्जति ।
यो निन्दं अप्पबोधति अस्सो भद्दो कसामिव ।
अस्सो यथा भद्रो कसानिविट्टो, आतापिनो संवेगिनो भवाथ।
सद्धाय सीलेन च वीरियेन च समाधिना धम्मविनिच्छयेन च ।।
प्रश्नव्याकरण, १०1११ : सोंडीरे कुंजरे व्व ।
छ
६. वही, १० 199 वसभे व्व जायथामे ।
१०. वही, १०1११: सीहे वा... होतिदुप्पधरिसे ।
११. वही, १०1११ : सूरोव्व दित्ततेए ।
१२ . वही, १०।११ चंदो इव सोमभावयाए।
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