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________________ भामका २०. अणाहपव्वज्जा नियंठिज्जं ( महानियंठ) ' २१. समुद्दपालिज्जं समुद्दपालिज्जं २२. रहनेमिज्जं रहनेमीय २३. गोयमकेसिज्जं केसिगोयमिज्जं २४. समितीओ समिइओ २५. जन्नतिज्जं जन्नइज्जं २६. सामायारी सामायारी १. २७. २८. मोक्खामगाई २६. अप्पमाओ ३०. तवोमग्गो ३१. चरणविही ३२. पमायठाणाई ३३. कम्मपगडी ३४. लेसज्झयणं ३५. अणगारमग्गे अणगारमग्गे ३६. जीवाजीवविभत्ती जीवाजीवाविभत्ती नियुक्ति के अनुसार छत्तीस अध्ययनों का विषय-वर्णन इस प्रकार है। अध्ययन १ २ ३ ४ ६ て € १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ खलुकिज्ज मुखगाई अप्पमाओ Jain Education International तव चरण पमायठाणं कमप्पयडी लेसा विषय - विनय -प्राप्त-कष्ट सहन का विधान । -चार दुर्लभ अंगों का प्रतिपादन । --प्रमाद और अप्रमाद का प्रतिपादन | मरण-विभक्ति—अकाम और सकाममरण । -विद्या और आचरण । -रस- गृद्धि का परित्याग । -लाभ और लोभ के योग का प्रतिपादन । -संयम में निष्प्रकम्प भाव । -अनुशासन । -बहुश्रुत की पूजा । -तप का ऐश्वर्य -निदान—भोग-संकल्प | --अनिदान - भिक्षु के गुण । ब्रह्मचर्य की गुप्तियां । -पाप- वर्जन । भोग- असंकल्प । -भोग और ऋद्धि का त्याग । - अपरिकर्म-देहाध्यास का परित्याग । -अनाथता । --विचित्र चर्या । उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा ४२२ एसा खलु निज्जुत्ती महानियंठस्स सुत्तस्स । (२२) २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ -चरण का स्थिरीकरण । -धर्म- चातुर्याम और पंचयाम । -समितियां-गुप्तियां । -ब्राह्मण के - सामाचारी । गुण 1 उत्तरज्झयणाण -अशठता । - मोक्ष-गति । - आवश्यक में अप्रमाद । -तप । — चारित्र । -प्रमाद-स्थान । कर्म । -लेश्या । - भिक्षु के गुण । -जीव और अजीव का प्रतिपादन । नियुक्तिकार ने उत्तराध्ययन के प्रतिपाद्य के संक्षिप्त संकेत प्रस्तुत किए हैं। इनसे एक स्थूल सी रूपरेखा हमारे सामने आ जाती है। विस्तार में जाएं तो उत्तराध्ययन का प्रतिपाद्य बहुत विशद है। भगवान् पार्श्व और भगवान् महावीर की धर्म देशनाओं का स्पष्ट चित्रण यहां मिलता है। वैदिक और श्रमण संस्कृति के मतवादों का संवादात्मक शैली में इतना व्यवस्थित प्रतिपादन अन्य आगमों में नहीं है। इसमें धर्म-कथाओं, आध्यात्मिक-उपदेशों तथा दार्शनिक सिद्धान्तों का आकर्षक योग है। इसे भगवान् महावीर की विचार धारा का प्रतिनिधि सूत्र कहा जा सकता है। १४. उत्तराध्ययन की कथाएं : तुलनात्मक दृष्टिकोण भारतीय धर्मों की अनेक साहित्यिक शाखाएं हैं। उनमें अनेक कथाएं एक जैसी हैं। प्रस्तुत सूत्र में चार कथाएं ऐसी हैं, जो किंचित् रूपान्तर के साथ महाभारत और बौद्ध साहित्य में मिलती हैं। जैसे--- उत्तराध्ययन १. हरिकेश बल (अ. १२) २. चित्त-संभूत (अ. १३) २. इपुकारीय (अ. १४) ४. नमि-प्रव्रज्या (अ. १५) महाभारत 9. X २. X ३. शान्तिपर्व, अ. १७५ शान्तिपर्व, अ. २७७ ४. शान्तिपर्व, अ. १७८ For Private & Personal Use Only २. उत्तराध्ययन निर्युक्ति, गाथा १८-२७। www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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