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________________ अध्ययन १० : श्लोक ६-१७ वनस्पतिकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक दुरन्त अनन्त काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। द्वीन्द्रियकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येय काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। त्रीन्द्रियकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येय काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। चतुरिन्द्रिकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येय काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। द्रुमपत्रक १८३ ६. वणस्सइकायमइगओ वनस्पतिकायमतिगतः उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्ष जीवस्तु संवसेत् । कालमणंतदुरंतं कालमनन्तं दुरन्तं समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।। १०.बेइंदियकायमइगओ द्वीन्द्रियकायमतिगतः उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्ष जीवस्तु संवसेत् । कालं संखिज्जसन्नियं कालं संख्येयसंज्ञितं समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः।। ११.तेइंदियकायमइगओ त्रीन्द्रियकायमतिगतः उक्कोसं जीवो उ संवसे।। उत्कर्ष जीवस्तु संवसेत् । कालं संखिज्जसन्नियं कालं संख्येयसंज्ञितं समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः।। १२.चउरिंदियकायमइगओ चतुरिन्द्रियकायमतिगतः उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्ष जीवस्तु संवसेत् ।। कालं संखिज्जसन्नियं कालं संख्येयसंज्ञितं समयं गोयम! मा पमायए। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।। १३.पंचिदियकायमइगओ पंचेन्द्रियकायमतिगतः उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्ष जीवस्तु संवसेत् । सत्तट्ठभवग्गहणे सप्ताष्टभवग्रहणानि समयं गोयम ! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।। १४.देवे नेरइए य अइगओ देवान्नैरयिकांश्चातिगतः उक्कोसं जीवो उ संवसे। उत्कर्ष जीवस्तु संवसेत् । इक्किक्कभवग्गहणे एकैकभवग्रहणं समयं गोयम ! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।। १५.एवं भवसंसारे एवं भवसंसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहिं। संसरति शुभाशुभैः कर्मभिः। जीवो पमायबहुलो जीवः प्रमादबहुलः समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः।। १६.लभ्रूण वि माणुसत्तणं लब्ध्वापि मानुषत्वं आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं। आर्यत्वं पुनरपि दुर्लभम् । बहवे दसुया मिलेक्खुया बहवो दस्यवो म्लेच्छाः समयं गोयम! मा पमायए। समयं गौतम ! मा प्रमादी:।। १७.लक्ष्ण वि आरियत्तणं लब्ब्वाप्यार्यत्वं अहीणपंचिंदियया हु दुल्लहा। विगलिंदियया हु दीसई विकलेन्द्रियता खलु दृश्यते समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम! मा प्रमादीः।। पंचेन्द्रियकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक सात-आठ जन्म-ग्रहण तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। देव और नरक-योनि में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक एक-एक जन्म-ग्रहण तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। इस प्रकार प्रमाद-बहुल जीव शुभ-अशुभ कर्मों द्वारा जन्म-मृत्युमय संसार में परिभ्रमण करता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। मनुष्य-जन्म दुर्लभ है, उसके मिलने पर भी आर्यत्व" और भी दुर्लभ है। बहुत से लोग मनुष्य होकर भी दस्यु और म्लेच्छ होते हैं, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। आर्य देश में जन्म मिलने पर भी पांचों इन्द्रियों से पूर्ण स्वस्थ होना दुर्लभ है। बहुत से लोग इन्द्रियहीन दीख रहे हैं, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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