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________________ मूल १. चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसंतमोहणिज्जो सरई पौराणियं जाई || २. जाई सरितु भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिविखमई नमी राया। ३. से देवलोगसरिसे अंतेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई । ४. मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं चिच्चा अभिनिक्खंतो एगंतमहिट्ठिओ भयवं ।। ५. कोलाहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयंतंमि । तइया रायरिसिमि नमिंमि अभिणिक्खमंतंमि ।। ६. अब्मुट्ठियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण इमं वयणमब्बवी ॥। ७. किण्णु भो ! अज्ज मिहिलाए कोलाहलगसंकुला । सुव्वंति दारुणा सद्दा पासासु गिहेसु य ? ।। ८. एयम निसामित्ता हेऊकारणचीइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ।। Jain Education International नवमं अज्झयणं नमिपव्वज्जा संस्कृत छाया व्युत्वा देवलोकात उपपन्नो मानुषे लोके । उपशान्तमोहनीयः स्मरति पौराणिकी जाति ।। : जातिं स्मृत्वा भगवान् स्वसंरे धर्म । पुत्रं स्थापयित्वा राज्ये अभिनिष्क्रामति नमिः राजा ।। स देवलोक सदृशान् वारान्तःपुरगतो वरान् भोगान् । भुक्त्वा नमिः राजा बुद्धो भोगान् परित्यजति ।। मिथिलासपुरजनपद बलमवरोध व परिजन सर्वम्। त्यक्त्वाऽभिनिष्क्रान्तः एकान्तमधिष्ठितो भगवान् ।। अभ्युत्थितं राजर्षि प्रव्रज्यास्थानमुत्तमम् । शको ब्राह्मणरूपेण हवं वचनमब्रवीत्।। नौवां अध्ययन नमि-प्रव्रज्या कोलाहलकभूतम् आसीमिथिलायां प्रव्रजति । तदा राजर्षी नमौ अभिनिष्क्रामति ।। श्रूयन्ते दारुणाः शब्दाः प्रासादेषु गृहेषु च ? || किन्नु भो ! अद्य मिथिलायां कोलाहलकसंकुलाः एतमर्थं निशम्य हेतुकारणवोदितः । ततो नमिः राजर्षिः देवेन्द्रमिदमब्रवीत ।। हिन्दी अनुवाद नमिराज का जीव देवलोक से च्युत होकर मनुष्य-लोक में उत्पन्न हुआ।' उसका मोह उपशान्त था जिससे उसे पूर्व जन्म की स्मृति हुई।' भगवान् * नमिराज पूर्व जन्म की स्मृति पाकर अनुत्तर धर्म की आराधना के लिए स्वयं संबुद्ध हुआ और राज्य का भार पुत्र के कंधों पर डालकर अभिनिष्क्रमण किया—प्रव्रज्या के लिए चल पड़ा। उस नमराज ने प्रवर अन्तःपुर में रहकर देवलोक के भोगों के समान प्रधान भोगों का भोग किया और संबुद्ध होने के पश्चात् उन भोगों को छोड़ दिया । भगवान् नमिराज ने नगर और जनपद सहित मिथिला नगरी, सेना, रनिवास और सब परिजनों को छोड़ कर अभिनिष्क्रमण किया और एकान्तवासी या एकत्व अधिष्ठित" हो गया। जब राजर्षि नमि अभिनिष्क्रमण कर रहा था, प्रव्रजित हो रहा था, उस समय मिथिला में सब जगह कोलाहल जैसा होने लगा । " उत्तम प्रव्रज्या - स्थान के लिए उद्यत हुए राजर्षि से देवेन्द्र ने ब्राह्मण के रूप में आकर इस प्रकार कहा---- हे राजर्षि ! आज मिथिला के प्रासादों और गृहों में " कोलाहल से परिपूर्ण दारुण" शब्द क्यों सुनाई दे रहे हैं ? यह अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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