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________________ आमुख मुनि वही बनता है जिसे बोधि प्राप्त है। वे तीन प्रकार के उसने कण्डूयन को एक ओर छिपा लिया। द्विमुख ने यह देख होते हैं--स्वयं-बुद्ध, प्रत्येक-बुद्ध और बुद्ध-बोधित (१) जो लिया। उसने कहा-“मुने ! अपना राज्य, राष्ट्र, पुर, अंतःपुरस्वयं बोधि प्राप्त करते हैं, उन्हें स्वयं-बुद्ध कहा जाता है, (२) आदि सब कुछ छोड़कर आप इस (कण्डूयन) का संचय क्यों जो किसी एक घटना के निमित्त से बोधि प्राप्त करते हैं, उन्हें करते हैं ?" यह सुनते ही करकण्डु के उत्तर देने से पूर्व ही नमि प्रत्येक-बुद्ध कहा जाता है और (३) जो बोधि-प्राप्त व्यक्तियों के ने कहा-“मुने! आपके राज्य में आपके अनेक कृत्यकरउपदेश से बोधि-लाभ करते हैं, उन्हें बुद्ध-बोधित कहा जाता है। आज्ञा पालने वाले थे। उनका कार्य था दण्ड देना और दूसरों का इस सूत्र में तीनों प्रकार के मुनियों का वर्णन है--(१) पराभव करना। इस कार्य को छोड़ आप मुनि बने। आज आप स्वयं-बुद्ध कपिल का आठवें अध्ययन में, (२) प्रत्येक-बुद्ध नमि दूसरों के दोष क्यों देख रहे हैं ?" यह सुन नग्गति ने कहाका नौवें अध्ययन में और (३) बुद्ध-बोधित संजय का अठारहवें “जो मोक्षार्थी हैं, जो आत्म-मुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, अध्ययन में। जिन्होंने सब कुछ छोड़ दिया है, वे दूसरों की गर्दा कैसे करेंगे?" इस अध्ययन का सम्बन्ध प्रत्येक-बुद्ध मुनि से है। तब करकण्डु ने कहा-“मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त साधु और ब्रह्मचारी करकण्डु, द्विमुख, नमि और नग्गति—ये चारों समकालीन यदि अहित का निवारण करते हैं तो वह दोष नहीं है। नमि, प्रत्येक-बुद्ध हैं। इन चारों प्रत्येक-बुद्धों के जीव पुष्पोत्तर नाम के द्विमुख और नग्गति ने जो कुछ कहा है, वह अहित-निवारण विमान से एक साथ च्युत हुए थे। चारों ने एक साथ प्रव्रज्या ली, के लिए ही कहा है अतः दोष नहीं है।" एक ही समय में प्रत्येक-बुद्ध हुए, एक ही समय में केवली बने ऋषिभाषित प्रकीर्णक में ४५ प्रत्येक-बुद्ध मुनियों का और एक ही समय में सिद्ध हुए। जीवन निबद्ध है। उनमें से बीस प्रत्येक-बुद्ध अरिष्टनेमि के करकण्डु कलिंग का राजा था, द्विमुख पंचाल का, नमि तीर्थ में, पन्द्रह पार्श्वनाथ के तीर्थ में और दस महावीर के तीर्थ विदेह का और नग्गति गंधार का। में हुए हैं। बूढ़ा बैल, इन्द्रध्वज, एक कंकण की नीरवता और (१) अरिष्टनेमि के तीर्थ में होने वाले प्रत्येक-बुद्धमंजरी-विहीन आम्र वृक्ष---ये चारों घटनाएं क्रमशः चारों की १. नारद ११. मंखलीपुत्र बोधि-प्राप्ति की हेतु बनीं। २. वज्जियपुत्र १२. याज्ञवल्क्य एक बार चारों प्रत्येक-बुद्ध विहार करते हुए क्षितिप्रतिष्ठित ३. असित्त दविल १३. मैत्रय भयाली नगर में आए। वहां व्यन्तरदेव का एक मन्दिर था। उसके चार ४. भारद्वाज अंगिरस १४. बाहुक द्वार थे। करकण्डु पूर्व दिशा के द्वार से प्रविष्ट हुआ, द्विमुख ५. पुष्पसालपुत्र १५. मधुरायण दक्षिण द्वार से, नमि पश्चिम द्वार से और नग्गति उत्तर द्वार से। ६. वल्कलचीरि १६. सोरियायण व्यन्तरदेव ने यह सोच कर कि मैं साधुओं को पीठ देकर कैसे ७. कुर्मापुत्र १७. विदु बैटूं, अपना मुंह चारों ओर कर लिया। ८. केतलीपुत्र १८. वर्षण कृष्ण करकण्डु खुजली से पीड़ित था। उसने एक कोमल ६. महाकाश्यप १६. आरियायण कण्डूयन लिया और कान को खुजलाया। खुजला लेने के बाद १०. तेतलिपुत्र २०. उत्कलवादी १. नंदी, सूत्र ३०। ४. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा २७६-२७६ : २. (क) सुखवोधा, पत्र १४४ : नग्गति का मूल नाम सिंहरथ था। वह जया रज्जं च रटुं च, पुरं अंतेउरं तहा। कनकमाला (वैताढ्य पर्वत पर तोरणपुर नगर के राजा दृढ़शक्ति सव्वमेअं परिच्चज्ज, संचयं किं करेसिमं? || की पुत्री) से मिलने पर्वत पर जाया करता था। प्रायः वहीं पर जया ते पेइए रज्जे, कया किच्चकरा बहू। रहने के कारण उसका नाम 'नग्गति' पड़ा। तेसिं किच्चं परिच्चज्ज, अज्ज किच्चकरो भवं ।। (ख) कुम्भकार जातक में उसे तक्षशिला का राजा बताया गया है और जया सव्वं परिच्चज्ज, मुक्खाय घडसी भवं। नाम नग्गजी (नग्गजित्) दिया है। परं गरहसी कीस?, अत्तनीसेसकारए।। ३. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा २७० : मुक्खमग्गं पवन्नेसु, साहूसु बंभयारिसु। पुप्फुत्तराउ चवर्ण पव्वज्जा होइ एगसमएणं। अहिअत्थं निवारिंतो, न दोसं वत्तुमरिहसि ।। पत्तेयबुद्धकेवलि सिद्धि गया एगसमएणं ।। इसिभासिय, पढमा संगहिणी, गाथा १ : पत्तेयबुद्धमिसिणो, वीसं तित्थे अरिट्टणेमिस्स । पासस्स य पण्णरस, वीरस्स विलीणमोहस्स ।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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