SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम अध्ययन : नालन्दीय ३६६ प्रत्याख्यान की पद्धति बताता हूँ; उसके अनुसार प्रत्याख्यान करना निर्दोष है । वह पद्धति यह है कि त्रस पद के आगे 'भूत' पद को जोड़कर प्रत्याख्यान करने से अर्थात् 'मुझे त्रसभूत प्राणी का मारने का त्याग है।' ऐसे शब्द--प्रयोग के सहित त्याग करने का आशय यह होता है कि जो प्राणी वर्तमानकाल में त्रसरूप से उत्पन्न हैं, उनको दण्ड देने का त्याग है, परन्तु जो वर्तमान काल में त्रस नहीं हैं, किन्तु आगे त्रसरूप में उत्पन्न होने वाले हैं, अथवा जो भूतकाल में त्रस थे, उनको मारने का त्याग नहीं है । ऐसी दशा में स्थावर पर्याय में उत्पन्न प्राणी को दण्ड देने पर भी प्रतिज्ञा भंग नहीं हो सकती । अतः आप लोग प्रत्याख्यान वाक्य में केवल त्रस पद का प्रयोग करने के बदले यदि "त्रसभूत" पद का प्रयोग करें अर्थात् त्रसभूत प्राणी को मारने का त्याग है, ऐसा प्रतिज्ञा वाक्य कहें तो प्रतिज्ञा भंग का दोष नहीं आ सकता । जैसे कोई व्यक्ति घृत-सेवन का त्याग लेकर यदि दधि खाता है तो उसका व्रत नष्ट नहीं होता, क्योंकि दही में घी होने पर भी वर्तमान में वह घी नहीं है, इसी प्रकार त्रस पद के बाद भूतपद जोड़ देने से भाषा में ऐसी शक्ति आ जाती है, जिससे स्थावर प्राणी के पर्याय में आए हुए त्रस प्राणी के घात से व्रत-भंग या प्रतिज्ञाभंग नहीं हो सकता । अतः उक्त भाषा में दोष निवारण की शक्ति होते हुए भी जो लोग क्रोध या लोभ के वशीभूत होकर प्रत्याख्यान के वाक्य में त्रस पद के उत्तर में 'भूत' पद को न लगाकर प्रत्याख्यान कराते हैं, वे दोष का सेवन करते हैं । हे गौतम ! क्या प्रत्याख्यान वाक्य में त्रस पद के उत्तर में भूत पद को लगाना न्यायसंगत नहीं है ? क्या यह पद्धति आपको भी पसन्द है ? मेरी तो यह धारणा है कि इस प्रकार प्रत्याख्यान करने-कराने से स्थावररूप से उत्पन्न बसों के घात होने पर भी प्रतिज्ञा भंग नहीं होती, अन्यथा प्रतिज्ञा-भंग होने में कोई सन्देह नहीं है। अभिओगेणं-अभियोग शब्द यहाँ बलात् आज्ञा के अर्थ में है। जैनागम में ५ प्रकार के अभियोग माने जाते हैं-राजाभियोग, गणाभियोग, बलाभियोग, महत्तराभियोग एवं आजीविकाभियोग । राजा की आज्ञा, गण (गणतंत्रात्मक संघीय शासन) की आज्ञा, बलवान् की आज्ञा, माता-पिता आदि बड़ों की आज्ञा तथा आजीविका का भय, इन परिस्थितियों को छोड़कर यानी ये परिस्थितियाँ न हों तो मेरे त्रसजीवों की हिंसा का त्याग है। गृहपतिचौरविमोक्षणन्याय-किसी राजा ने अपने नगर में यह आज्ञा दी कि आज रात को नगर के बाहर कौमुदी महोत्सव मनाया जाएगा, इसलिए समस्त नगरवासी नगर को छोड़कर सायंकाल ही नगर से बाहर आ जाएँ । जो मेरी इस आज्ञा को न मानकर आज रात्रि में इस नगर में ही रह जाएगा, उसे मृत्युदण्ड दिया जाएगा। इस आज्ञा को सुनकर सभी नगरवासी सूर्यास्त के पूर्व ही नगर के बाहर चले गए, परन्तु एक वैश्य के पाँच पुत्र अपने काम की धुन में नगर से बाहर जाना भूल गये । सूर्यास्त हो जाने पर नगर के सभी फाटक बाहर से बन्द कर दिये गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy