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________________ सूत्रकृतांग सूत्र [द्वितीय श्रुतस्कन्ध (अमरसुखबोधिनी-व्याख्या सहित) प्रथम श्रुतस्कन्ध सोलह अध्ययनों में समाप्त हो जाने के पश्चात् द्वितीय श्रुतस्कन्ध प्रारम्भ किया जाता है । प्रथम श्रुतस्कन्ध में जिन बातों का संक्षेप में निरूपण किया गया है, द्वितीय श्रुतस्कन्ध में वे ही बातें विस्तार एवं युक्ति के साथ कही गई हैं । जो बातें संक्षेप और विस्तार दोनों तरह से समझाई जाती हैं, वे अच्छी तरह समझ में आ जाती हैं। इसलिए प्रथम श्रुतस्कन्ध में कहे गये पदार्थों का इस श्रुतस्कन्ध में विस्तार के साथ वर्णन करना युक्तियुक्त ही है । अथवा प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो बातें बताई गई हैं, उन्हें दृष्टांत देकर स्पष्ट रूप से समझाने के लिए ही इस द्वितीय श्रुतस्कन्ध की रचना की गई है। इसलिए ये दोनों ही श्रुतस्कन्ध संक्षिप्त और विस्तृत रूप से एक ही अर्थ के प्रतिपादक हैं । द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन हैं । नियुक्तिकार ने इन सात अध्ययनों को महाध्ययन कहा है । क्योंकि ये अध्ययन बहुत बड़े-बड़े हैं, इसलिए ये महाअध्ययन कहे जाते हैं । वृत्तिकार ने इन्हें महाअध्ययन कहने का कारण बताते हुए लिखा है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो बातें संक्षेप में कही गई हैं वे ही इन अध्ययनों में विस्तार से बताई गई हैं। इसीलिए इन्हें महाअध्ययन कहा गया है। अथवा प्रथम श्रुतस्कन्ध के पहले अध्ययन की अपेक्षा द्वितीय श्रुतस्कन्ध का प्रथम अध्ययन बड़ा होने से भी इसका नाम महाअध्ययन है। इन सात अध्ययनों के नाम ये हैं—(१) पुण्डरीक, (२) क्रिया-स्थान, (३) आहारपरिज्ञा, (४) प्रत्याख्यान क्रिया, (५) आचार श्रुत या आगार श्रुत, (६) आर्द्रकीय और (७) नालन्दीय । इनमें से आचारश्रुत और आर्द्र कीय, ये दो अध्ययन पद्यरूप हैं, शेष पाँच अध्ययन गद्यरूप हैं। आहारपरिज्ञा में सिर्फ चार पद्य आते हैं, बाकी का सारा अध्ययन गद्यमय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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