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सूत्रकृतांग सूत्र वयासी-आउसंतो गोयमा ! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च आउसो ! अहासुयं अहांदरिसियं मे वियागरेहि सवायं। भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी अवियाइ आउसो सोच्चा निसम्म जाणिस्सामो॥ सू०७१ ॥
__संस्कृत छाया तस्मिश्च गृहप्रदेशे भगवान् गौतमो विहरति भगवांश्चाध आरामे । अथ उदकः पेढालपुत्रः भगवत्पावपित्यीयः निम्रन्थः मेदार्यो गोत्रेण यत्र भगवान् गौतमस्तत्रोपागच्छति, उपगम्य भगवन्तं गौतममेवमवादीत-"आयुष्मन् गौतम ! अस्ति खलु मे कोऽपि प्रदेशः प्रष्टव्यः। तं चायुष्मन् ! यथाश्रतं यथादर्शनं मे व्यागृणीहि सवादम् ।" भगवान् गौतम उदकं पेढालपुत्रमेवमवदीत्, “अपि चेदायुष्मन् ! श्रुत्वा निशम्यज्ञास्यामः ।।सू० ७१।।
अन्वयार्थ (तस्सि च णं गिहपदेसंमि भगवं गोयमे विहरइ) उस वनखण्ड के गृहप्रदेश में भगवान् गौतमस्वामी विचरण करते थे। (भगवं च णं अहे आरामंसि) भगवान् गौतम स्वामी नीचे बगीचे में विराजमान थे। (अहे णं उदए पेढालपुत्त भगवं पासावचिज्जे नियंठे मेयज्जे गोत्तणं जेणेव भगवं गोयमे तणेव उवागच्छइ) इसी अवसर में उदकपेढालपुत्र, जो भगवान् पार्श्वस्वामी का शिष्यसन्तान था, और मेदार्य गोत्र वाला निग्रन्थ था, भगवान् गौतमस्वामी के पास आया । (उवागच्छाइत्ता भगवं गोयम एवं वयासी-आउसंतो गोयमा! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छ्यिब्वे) उसने भगवान् गौतमस्वामी के पास आकर यों कहा-आयुष्मन् गौतम ! हमें आपसे कोई प्रदेश (स्थल) प्रश्न पूछने हैं, (तं च आउसो अहासुयं अहादरिसियं मे वियागरेहि सवाय) हे आयुष्मन् ! उसे आपने जैसा सुना और जैसा निश्चय किया है, वैसा मुझसे वाद के सहित कहें। (भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्त एवं वयासी) भगवान् गौतम ने उदक पेढालपुत्र से इस प्रकार कहा- (अवियाइ आउसो सोच्चा निसम्म जाणिस्सामो) हे आयुष्मन् ! आपका प्रश्न सुनकर और समझकर यदि मैं जान सकूगा तो उत्तर दूंगा।
सारांश एक बार गौतमस्वामी ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए उसी हस्तियाम वनखण्ड में पधारे और उसमें बने हुए गृह के समीप ठहरे। उसी दौरान उदकपेढालपुत्र नामक पार्श्वनाथ परम्परा के निर्ग्रन्थ एक बार उस वनखण्ड में इन्द्रभूति गौतम गणधर के पास आकर बैठे और इन्द्रभूति गौतम से
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