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सूत्रतांग सू
का भागी नहीं, (२) दो हजार बौद्धभिक्षुओं को भोजन कराने वाला महापुण्य का उपार्जन करता है, (३) मांसभक्षण, जो अमुक विधि से तैयार किया गया हो, उद्दिष्ट हो तो भी भिक्षुओं को सेवन करने में दोष नहीं है । किन्तु मुनि ने तीनों का भली-भाँति खण्डन किया है, इन मान्यताओं को दोषयुक्त बताया है ।
मूल पाठ
सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए नियये माहणाणं । ते पुण्णखंधे सुमहज्जणित्ता, भवंति देवा इति वेयवाओ ॥ ४३ ॥ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोगए णियए कुलालयाणं । से गच्छति लोलुवसंपगाढे तिव्वाभितावी णरगाभिसेवी ॥ ४४ ॥ दयावरं धम्म दुगु छमाणा वहावहं धम्म पसंसमाणा । एपिजे भोययई असील, णिवो णिसं जाइ कुओ सुरेहि ? ॥ ४५ ॥ संस्कृत छाया
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स्नातकानां तु द्वे सहस्र, यो भोजयेन्नित्यं ब्राह्मणानाम् । ते पुण्यस्कन्धं सुमहज्जनित्वा भवन्ति देवा इति वेदवादः ॥ ४३ ॥ स्नातकानां तु द्वे सहस्र े, यो भोजयेन्नित्यं कुलालयानाम् I स गच्छति लोलुपसम्प्रगाढ़े तीव्राभितापी नरकाभिसेवी ॥ ४४ ॥ दयावरं धर्मं जुगुप्सन् वधावहं धर्मं प्रशंसन् । एकमप्यशीलं यो भोजयति नृपः, निशां याति कुतः सुरेषु ॥ ४५ ॥ अन्वयार्थ
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ब्राह्मण लोग आर्द्र मुनि से कहने लगे - ( जे दुवे सहस्से सिणायगाणं माहगाणं णियए भोयए) जो पुरुष दो हजार स्नातक ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन कराता है, (ते सुमह पुण्णखं जणित्ता देवा भवंति इति वेयवाओ ) वह भारी पुण्यराशि का उपार्जन करके देवता होता है, यह वेद का कथन है ||४३||
आर्द्रकमुनि ने कहा - ( कुलालयाणं सिणायगाणं जे दुवे सहस्ते णियए भोयए) क्षत्रिय आदि कुलों में भोजन करने के लिए घूमने वाले दो हजार स्नातक ब्राह्मणों को जो प्रतिदिन भोजन कराता है, ( से लोलुव संपगाढे तिव्वाभितावी णरगाभिसेवी गच्छति ) वह व्यक्ति मांसलोलुप पक्षियों से परिपूर्ण नरक में जाता है और वह वहाँ भयंकर ताप भोगता रहता है ||४४ ॥
(दयावरं धम्म दुगु छमाणा वहावह धम्म पसंसमाणा जे णिवो) दयाप्रधान
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