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हैं या अविद्यमान, लोक-अलोक के अस्तित्व यथार्थ ज्ञान, जीव और अजीव के अस्तित्व का यथार्थ ज्ञान, धर्म और अधर्म के अस्तित्व का यथार्थ ज्ञान, बंध और मोक्ष का अस्तित्व मानना ही चाहिए, पुण्य और पाप को मानना यथार्थ है, आस्रव और संवर के अस्तित्व की यथार्थता, वेदना और निर्जरा के अस्तित्व का सम्यग्ज्ञान, क्रिया और अक्रिया दोनों का अस्तित्व मानना, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वष के अस्तित्व का यथार्थ ज्ञान, चातुर्गतिक संसार हैयही विचार यथार्थ है, सिद्धि, असिद्धि और सिद्धिस्थान का निश्चय, साधु-असाधु, कल्याणवान या पापी का अस्तित्व, कोई एकान्त कल्याणकारी या पापी नहीं होता, एकान्त नित्य या अनित्य कहना ठीक नहीं, सारा जगत् एकान्त दुःखमय है - यह कथन युक्तिसंगत नहीं, ये प्राणी वध्य हैं अवध्य हैं-यह वचन भी न कहे, सुसाधु के विषय में मिथ्या कल्पना मत करो, दानप्राप्ति अमुक से होगी या नहीं होगी-ऐसा न कहे, पूर्वोक्त सभी बातों का मोक्ष-प्राप्तिपर्यन्त
ध्यान रखे । छठा अध्ययन : आर्द्र कोय
३४१-३८५ छठे अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, आक्षेप गोशालक के : उत्तर आर्द्र क मुनि के, गोशालक के भोगवादी धर्म का आर्द्र क मुनि द्वारा प्रतिवाद, दार्शनिकों के विवाद के सम्बन्ध में आक की दृष्टि, डरपोक होने के आक्षेप का उत्तर, गोशालक द्वारा प्रदत्त वणिक् की उपमा का प्रतिवाद, बौद्धों के अपसिद्धान्त का आर्द्र क मुनि द्वारा खण्डन, कुशील-ब्राह्मण-भोजन का फल : शंका-समाधान, एकदण्डीमत और आर्द्र क मुनि द्वारा समाधान, हस्तितापसों को आर्द्र क मुनि का
करारा उत्तर, सद्धर्म को अंगीकार करने वाले त्राता का जीवन ।। सप्तम अध्ययन : नालन्दीय
३८६-४५४ सप्तम अध्ययन का संक्षिप्त परिचय ! नालन्दा की विशेषताएँ, लेप श्रमणोपासक की विशेषताएं, प्रत्याख्यानप्रतिज्ञाभंग : एक शंका, उदकपेढालपुत्र द्वारा प्रस्तुत सुप्रत्याख्यान का स्वरूप, उदक निर्ग्रन्थ को गौतमस्वामी का स्पष्ट उत्तर, प्रश्न उदक निर्ग्रन्थ के : उत्तर गौतमस्वामी के, अटपटी शंका : स्पष्ट समाधान, निर्ग्रन्थों से श्री गौतमस्वामी के प्रश्न-प्रतिप्रश्न, श्रमणोपासक का त्रसहिंसा-प्रत्याख्यान निविषय नहीं, विभिन्न पहलुओं से श्रावक के प्रत्याख्यान की सार्थकता उदक निर्ग्रन्थ का जीवन-परिवर्तन ।
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