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सूत्रकृतांग सूत्र मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमता, सुत्तेहि अत्थेहि य णिच्छयन्ना। पुच्छिसु मा णे अणगार अन्ने, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ ॥१६॥ णो कामकिच्चा ण य बालकिच्चा, रायाभिओगेण कुओ भएणं। वियागरेज्ज पसिणं नवावि, सकाम किच्चेणिह आरियाणं ॥१७॥ गंता च तत्था अदुवा अगंता, वियागरेज्जा समियासपन्ने । अणारिया सणओ परित्ता, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ ॥१८॥
. संस्कृत छाया आगन्त्रगारे आरामागारे श्रमणस्तु भीतो नोपैति वासम् । दक्षा हि सन्ति बहवो मनुष्याः, ऊनातिरिक्ताश्च लपालपाश्च ।। १५ ।। मेधाविनः शिक्षित बुद्धिमन्तः, सूत्रेष्वर्थेषु च निश्चयज्ञाः । मा प्राक्षुरनगारा अन्य इति शंकमाणो नोपैति तत्र ॥ १६ ॥ न कामकृत्यो न च बालकृत्यो, राजाभियोगेन कुतोभयेन । व्यागृणीयात् प्रश्नं नवाऽपि, स्वकामकृत्येनेहार्याणाम् ।। १७ ।। गत्वा च तत्राऽथवाऽगत्वा, व्यागृणीयात् समतयाऽऽशुप्रज्ञः । अनार्याः दर्शनतः परीता इति . शंकमाणो नोपैति तत्र ॥ १८ ।।
अन्वयार्थ (समणे उ भीते आगंतगारे आरामगारे वासं ण उवेति) गोशालक पुनः आर्द्रक मुनि से कहता है- तुम्हारे श्रमण भगवान् महावीर बड़े डरपोक हैं, इसीलिए तो जहाँ बहुत से आगन्तुक लोग ठहरते हैं, ऐसे गृहों में तथा आरामगृहों में निवास नहीं करते। (बहवे मणुस्सा ऊणातिरित्ता लवालवा य दक्खा संति) वे सोचते हैं कि उक्त स्थानों में बहुत से मनुष्य कोई न्यून, कोई अधिक तथा कोई वक्ता और कोई मौनी निवास · करते हैं ॥१५॥
(महाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता सुत्तेहिं अत्थेहिं य णिच्छायन्ना अन्ने अणगार माणे पुच्छिसु इति संकमाणो तत्थ ण उवेति) एवं कोई बुद्धिमान्, कोई शिक्षा पाए हुए, कोई मेधावी तथा कोई सूत्रों और अर्थों के पूर्ण रूप से निश्चय किये हुए व्यक्ति वहाँ निवास करते हैं । अतः ऐसे दूसरे साधु मुझसे कुछ प्रश्न न पूछ बठे, ऐसी आशंका करके वहाँ महावीर स्वामी नहीं जाते ॥१६॥
(णो कामकिच्चा ण य बालकिच्चा) आर्द्र क मुनि ने गोशालक के आक्षेप का उत्तर देते हए कहा-भगवान् महावीर स्वामी बिना प्रयोजन के कोई भी कार्य नहीं करते तथा वे बालक की तरह बिना विचारे कोई भी कार्य नहीं करते । (रायाभिओगेण भएणं कुओ) वे राजभय से भी धर्मोपदेश नहीं करते, फिर अन्य भयों की तो बात ही
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