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________________ छठा अध्ययन : आर्द्रकीय ३४३ आर्द्रक मुनि ने दीक्षा के समय हुई आकाशवाणी का स्मरण किया, और कर्मोदयवश साधुवेश छोड़कर पुनः गृहस्थधर्म में प्रविष्ट हुए । जब आर्द्र कुमार के एक पुत्र हो गया, तब उसने श्रीमती से कहा - "प्रिये ! अब तुम्हारा निर्वाह करने वाला यह पुत्र हो गया है, अब मुझे छुट्टी दो, मैं पुनः संयम ग्रहण करूँगा ।" श्रीमती उसी दिन से उदास होकर रहने और चरखे पर सूत कातने लगी । यह देखकर बालक ने अपनी माँ से पूछा - " माँ ! ऐसा क्यों कर रही हो ?" "बेटा ! तुम्हारे पिताजी दीक्षा अंगीकार करेंगे। तुम अभी द्रव्योपार्जन नहीं कर सकते । अतः मैंने जीवननिर्वाह के लिए सूत कातना शुरू किया है ।" लड़के ने माँ से वादा किया कि मैं पिताजी को बाँधकर रखूंगा । और सचमुच ही उसने खाट पर सोये हुए आर्द्र कुमार के पैर को काते हुए सूत से लपेट दिया । जब आर्द्रक जागा तो देखा - सूत के बारह आँटे लगाए हुए हैं। बालक के अनुरोध पर उसने (आर्द्रक - कुमार ने) १२ वर्ष और गृहस्थधर्म में रहने का निश्चय कर लिया । बारह वर्ष की अवधि समाप्त होने पर आर्द्र ककुमार ने फिर साधुवेश पहना, सूत्र एवं अर्थ में निपुण हुआ और एकाकी विचरण करता हुआ राजगृह में, जहाँ भगवान् महावीर उपदेश दे रहे थे, वहाँ पहुँचने के लिए चल पड़ा । आर्द्रक के पिता ने जिन ५०० सैनिकों को उसकी रखवाली के लिए नियुक्त किया था, वे भी आर्द्रक के भाग जाने पर राजा के भय के भाग गये। वे जंगल में वृत्ति करके अपना निर्वाह करने लगे । एक दिन आर्द्रक से उनकी मुठभेड़ हो गई । वे उन्हें पहचानकर पकड़ने लगे तो उन्हें आर्द्रक ने कहा - " अरे ! यह क्या अनार्य कर्म कर रहे हो ?" इस पर उन्होंने अपनी सारी आपबीती कह सुनाई । आर्द्र ने उन्हें वैराग्यमय उपदेश दिया, जिससे विरक्त होकर वे सब आर्द्रक मुनि के पास दीक्षित हो गए । आर्द्रक मुनि अपने शिष्य परिवार सहित जब राजगृह की ओर जा रहे थे, तभी रास्ते में एक राजा मिला, जिसने सेना सहित पड़ाव डाल रखा था । उस राजा का हाथी खम्भे से बँधा हुआ था, लेकिन आर्द्रक मुनि को देखते ही वह बन्धनमुक्त हो गया । इस पर उक्त राजा ने पूछा - " आर्द्रक मुनि ! आपको देखते ही यह हाथी कैसे छूट गया ?" मुनि ने कहा - 'न दुक्करं वारण- पासमोयणं' अर्थात् भौतिक बन्धन से बद्ध हाथी का बन्धन से छूट जाना क्या बड़ी बात है ? मुझे तो कर्मावली के तन्तुओं से बँधे हुए बंधन का छूटना ही दुष्कर प्रतीत होता है । जब मेरे कर्मावली के बंधन छिन्न-भिन्न हो गये तो हाथी के बंधन के छिन्न-भिन्न हो जाने में आश्चर्य की क्या बात है ? राजा यह सुनकर अत्यन्त प्रभावित हुआ । पाँच सौ शिष्यों से परिवृत होकर आर्द्रक मुनि जब भगवान् महावीर की वन्दना करने जा रहे थे, तभी मार्ग में उन्हें गोशालक, बौद्धभिक्षु, ब्रह्मव्रती (त्रिदण्डी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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