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________________ छठा अध्ययन : आर्द्रकीय छठे अध्ययन का संक्षिप्त परिचय पाँचवें अध्ययन में बताया गया है कि उत्तम पुरुष को अनाचार का त्याग और आचार का सेवन करना चाहिए, इस छठे अध्ययन में अनाचार-त्यागी एवं आचारपालक आईक मुनि का उदाहरण देकर यह बताया जाता है कि अनाचार का त्याग एवं आचार का सेवन मनुष्य के द्वारा किया जा सकता है। वह असम्भव नहीं, सम्भव है। अध्ययन के प्रारम्भ में ही 'पुराकडं अद्द ! इमं सुणेह' (हे आर्द्र क ! तू इस पूर्वकृत को सुन) इस प्रकार आर्द्रक को सम्बोधित किया गया है । इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इस अध्ययन में चर्चित वाद-विवाद का सम्बन्ध आर्द्र क के साथ है। इसीलिए इस अध्ययन का नाम 'आर्द्र कोय' रखा गया है । यह आर्द्र क कौन था ? कहाँ का था? कैसे मुनि बना ? और वाद-विवाद कब और किस परिस्थिति में हुआ ? इन सब बातों के समाधान हमें नियुक्तिकार एव वृत्तिकार द्वारा मिलते हैं । आर्द्र कपुर नामक नगर के राजा रिपुमर्दन की रानी आर्द्र कवती की कुक्षि से आर्द्र ककुमार का जन्म हुआ । अनुश्रुति यह है कि यह आर्द्रकपुर अनार्य देश में था, जहाँ वीतराग-प्ररूपित धर्म के प्रचार-प्रसार की गुजाइश दुष्कर थी इसलिए कुछ लोगों ने तो आर्द्र कपुर-अद्द-आर्द्र शब्द की तुलना ‘एडन' के साथ की है । आर्द्रकपुर के राजा और मगधराज श्रोणिक के बीच स्नेह सम्बन्ध था । एक बार आर्द्र ककुमार के पिता ने राजगृह नगर में श्रेणिक राजा को प्रीतिवृद्धि के लिए कोई उपहार भेजा । जब उपहार देकर राजसेवक आर्द्र कपुर लौटा और उसने राजा श्रेणिक की गुणग्राहकता का परिचय दिया तो आर्द्र ककुमार ने उससे पूछा"राजा श्रोणिक के कोई पुत्र है या नहीं ?" "हाँ, है ! श्रेणिक राजा का पुत्र अभयकुमार है, जो समस्त कलाओं में निपुण है, अनेक विद्याओं का वेत्ता है, भहान् लक्षणों एवं धीरता, वीरता, विनय एवं गम्भीरता आदि अनेक गुणों से सम्पन्न है।" यह सुनकर आईफकुमार को अभयकुमार के प्रति प्रीति उत्पन्न हुई और उसने प्रीतिसंवर्द्धन के लिए एक उपहार भेजा । राजसेवक ने आर्द्र क द्वारा प्रेषित उपहार अभयकुमार को दिया, स्नेहपूर्ण वचन भी कहे । अभय कुमार ने सोचा- यह आर्द्रक भव्य और शीघ्र मोक्षगामी होना चाहिए, जो मेरे साथ मैत्री करने की और भारत आकर राजगृह देखने की अभिलाषा रखता है। अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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