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पंचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्रुत
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-दान का प्रतिलाभ-प्राप्ति अमुक से होती है या अमुक से नहीं होती, अथवा तुम्हें आज भिक्षालाभ मिलेगा या नहीं मिलेगा, बुद्धिमान साधु ऐसी बात न कहे। (संतिमग्गं च बूहए) किन्तु जिससे शान्ति यानी मोक्ष के मार्ग की वृद्धि होती हो, ऐसा वचन कहे।
व्याख्या
___ दान-प्राप्ति अमुक से होगी या नहीं होगी, ऐसा न कहे साधु मर्यादा में स्थित साधु को यह नहीं कहना चाहिए कि अमुक गृहस्थ से दान की प्राप्ति होगी, अमुक गृहस्थ से नहीं होगी। दानलाभ के सम्बन्ध में स्वयूथिक या परयूथिक साधु के पूछने पर मुनि को यह नहीं कहना चाहिए कि आज तुम्हें भिक्षा मिलेगी या नहीं मिलेगी । यदि साधु ऐसा कह देता है कि आज तुम्हें भिक्षा मिलेगी, तो पूछने वाले साधु को अपार हर्ष होने से अधिकरणादि दोष उत्पन्न हो सकते हैं, तथा 'आज तुम्हें भिक्षा नहीं मिलेगी', ऐसा कहने पर अन्तराय होना सम्भव है, एवं भिक्षार्थी के मन में भी दुःख होना सम्भव है । कदाचित् साधु की कही हुई बात अन्यथा हो जाए तो उसके प्रति उक्त प्रश्नकार के मन में अश्रद्धा पैदा हो सकती है। इसलिए स्वयूथिक या परयूथिक के पूछने पर साधु को एकान्त रूप से कुछ भी नहीं कहना चाहिए। जिस प्रकार सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग की उन्नति हो, वैसी बात भाषासमिति के द्वारा साधु को कहनी चाहिए। इस प्रकार धर्मोपदेश देते समय भी साधु को निरवद्य भाषा बोलना चाहिए जैसे कि कहा है
____ "सावज्जणवज्जाणं वयणाणं जो ण जाणइ विसेसं ।"
"जिस साधु को सावद्य एवं निरवद्य भाषा का ज्ञान नहीं है, वह दूसरों को क्या खाक धर्मोपदेश देगा ?"
दक्खिणाए पडिलंभो-दक्षिणा दान को कहते हैं, उसका प्रतिलाभ यानी प्राप्ति -दानलाभ । इस गाथा में प्रयुक्त 'पडिलंभो' शब्द स्वयूथिक-अपने यूथ-सम्प्रदाय केसाधु को और परयूथिक-तीर्थान्तरीय-अन्य धर्म-सम्प्रदाय के-साधु के दान-लाभ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । गृहस्थ के दानलाभ अर्थ में नहीं।
__ कई लोग इस गाथा को प्रस्तुत करके यह अर्थ लगाते हैं कि "जिस समय दाता किसी दीन-हीन को दे रहा हो और लेने वाला ले रहा हो, उस समय साधु को अनुकम्पादान में एकान्त पाप नहीं कहना चाहिए, परन्तु उपदेश करते समय उसमें एकान्त पाप कहकर इस अनुकम्पादान का निषेध करना चाहिए।" यह नितान्त असत्य और पूर्वापरप्रसंग विरुद्ध है । यहाँ अनुकम्पादान का प्रसंग ही नहीं है यहाँ तो भाषासमिति का प्रकरण है। और न ही यहां शास्त्रकार ने 'गृहस्थ के दानलाभ' अर्थ में दक्खिणाए पडिलंभो शब्द का प्रयोग किया है।
सारांश प्रस्तुत गाथा का आशय यह है कि यदि कोई स्वयूथिक या परयूथिक
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