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पंचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्रुत
नास्ति बन्धो वा मोक्षो वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति बन्धो मोक्षो वेत्येवं संज्ञां निवेशयेत् ।। १५ ।। नैवं संज्ञां निवेशयेत् । एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥ १६ ॥ नैवं संज्ञां निवेशयेत् ।
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नास्ति पुण्यं वा पापं वा अस्ति पुण्यं वा पापं वा नास्त्याश्रवः संवरो वा अस्त्याश्रवः संवरो वा एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। १७ ।। नास्ति वेदना निर्जरा वा नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति वेदना निर्जरा वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। १८ ।। नास्ति क्रिया अक्रिया वा नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति क्रिया अक्रिया वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥ १६ ॥
अन्वयार्थ
( जीवा अजीवा वा णत्थि एवं सन्नं ण निवेसए) जीव और अजीव पदार्थ नहीं हैं, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए। (अस्थि जीवा अजीवा वा एवं सन्नं निवेस ) किन्तु जीव हैं और अजीव हैं, इस प्रकार की बुद्धि रखनी चाहिए ॥१३॥
( धम्मे अधम्मे वा णत्थि एवं सन्नं ण निवेसए) धर्म-अधर्म नहीं हैं, इस प्रकार की बुद्धि नहीं रखनी चाहिए । (अत्थि धम्मे अधम्मे वा एवं सन्नं निवेस ) किन्तु धर्म भी है, अथवा अधर्म भी है, यही बुद्धि रखनी चाहिए ||१४||
( बंधे मोक्खे वा णत्थि एवं सन्नं ण निवेसए) बन्ध या मोक्ष नहीं है, यह नहीं मानना चाहिए । ( बंधे मोक्खे वा अस्थि एवं सन्नं नित्रेसए) किन्तु बन्ध और मोक्ष हैं, यही बात माननी चाहिए ||१५||
(पुष्णे व पावे वा णत्थि एवं सन्तं ण निवेस ए) पुण्य और पाप नहीं है, ऐसी बुद्धि रखना उचित नहीं है, (पुण्णे व पावे वा अस्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु पुण्य भी है और पाप भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए ॥ १६ ॥
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( आसवे संवरे वा णत्थि एवं सन्तं ण निवेस ए) आश्रव और संवर नहीं हैं, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए। (अत्थि आसवे संवरे वा, एवं सन्नं निवेस ) किन्तु आश्रव और संवर हैं, ऐसी बुद्धि रखनी उचित है ॥१७॥
( वेयणा निज्जरा वा णत्थि एवं सन्तं ण निवेसए) वेदना और निर्जरा नहीं हैं, इस प्रकार की मान्यता रखना ठीक नहीं है, (वेयणा निज्जरा वा अस्थि एवं सन्नं निवेस ) किन्तु वेदना और निर्जरा हैं, यह मान्यता रखना ठीक है ॥ १८ ॥
(किरिया अकिरिया वा णत्थि एवं सन्नं ण निवेसए) क्रिया और अक्रिया नहीं हैं, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए। (किरिया अकिरिया वा अस्थि एवं सन्नं निवेस ) अपितु क्रिया भी है, अक्रिया भी है, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए ||१६||
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