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चतुर्थ अध्ययन : प्रत्याख्यान-क्रिया
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अक्रियाकुशल आत्मा मिथ्यात्व के उदय में स्थित रहता है, प्राणियों को एकान्तरूप से दण्ड देने वाला, राग-द्वेष से पूर्ण, बालक के समान अविवेकी, और सोया हुआ (प्रमादी) भी होता है। जैसे द्रव्यनिद्रा में सोया हुआ पुरुष शब्दादि विषयों को जान नहीं पाता, वैसे ही भावनिद्रा में सोया हुआ आत्मा हित की प्राप्ति और अहित के परिहार को नहीं जानता । साथ ही ऐसा आत्मा प्राणियों की विराधना का विचार न करता हुआ भी अपने मन, वचन, शरीर और वाक्य का प्रयोग करता है। मन का अर्थ है-मनन करने वाला अन्तःकरण, वचन का अर्थ वाणी और काय का अर्थ शरीर है। किसी अर्थ का प्रतिपादन करने वाला पदों का समूह वाक्य कहलाता है। तात्पर्य यह है कि प्रत्याख्यानहीन आत्मा विचारहीन होता है, वह सावद्य-निरवद्य का विचार न करके अपने मन आदि साधनों का प्रयोग करता है। तथा प्रत्याख्यानहीन आत्मा अपने पूर्वकृत पाप का तप के द्वारा नाश तथा भावी पाप का प्रत्याख्यान नहीं कर पाता । वर्तमान काल में कर्मों की स्थिति और अनुभाग को तप आदि द्वारा कम करके नष्ट कर देना प्रतिहत करना कहलाता है। पूर्वकृत दोषों (अतिचारों) की निन्दा (पश्चात्ताप) और गर्दा करके भविष्य में उस पापकर्म को न करने का संकल्प करना प्रत्याख्यान करना कहलाता है।
___ इस प्रकार जो आत्मा प्रत्याख्यानी नहीं है, उसे भगवान् तीर्थकरदेव ने असंयत (संयमरहित), विरतिरहित, पापनाश और प्रत्याख्यान न करने वाला, सावद्यअनुष्ठानरत, संवरहीन, मन-वचन-काया की गुप्ति से रहित, अपने व दूसरे को एकान्त दण्ड देने (हिंसा करने वाला, बालकवत् हिताहित-भानरहित एवं एकान्त प्रमादी कहा है। ऐसा व्यक्ति अपने मन-वचन-काया की प्रवृत्ति करते समय कदापि नहीं सोचता कि मेरी इस प्रवृत्ति से दूसरे प्राणियों की क्या दशा होगी ? ऐसे जीवों का विज्ञान इतना अव्यक्त हो कि वे पाप का स्वप्न न भी देखें तो भी वे पापकर्म ही करते रहते हैं।
असंयत-जो वर्तमानकाल में सावद्यकृत्यों में प्रवृत्ति कर रहा हो । अविरत- अतीत एवं अनागतकालीन पाप से जो निवृत्त न हो। अप्रत्याख्यातपापकर्मा- जो सतत पापकर्म में रत रहता है। सक्रिय - जो सतत सावधक्रिया से युक्त रहता हो । असंवृत्त-जो आते हुए कर्मों को रोकने वाले व्यापार से रहित हो।
एकान्तदण्ड का अर्थ हिंसक और एकान्तबाल का अर्थ अज्ञानी है। ऐसा प्रत्याख्यानरहित पुरुष स्वप्न में भी श्रुत-चारित्र धर्म को नहीं देखता । वह अज्ञानी सतत पापकर्मों का संचय करता रहता है, तथा प्राणातिपात (हिंसा) आदि पापकृत्य करता रहता है।
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