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कृतांग में लोक, अलोक, लोकालोक, जीव, अजीव आदि का निरूपण है तथा क्रियावादी आदि ३६३ पाखण्डियों के मतों का खण्डन किया गया है। दिगम्बर-परम्परा के मान्य ग्रन्थ राजवार्तिक के अनुसार सूत्रकृतांग में ज्ञान, विनय, कल्प, अकल्प, व्यवहार-धर्म एवं विभिन्न क्रियाओं का निरूपण है ।
सूत्रकृतांगसूत्र का संक्षिप्त परिचय जैन-परम्परा द्वारा मान्य अंग सूत्रों में सूत्रकृतांग का द्वितीय स्थान है । किन्तु दार्शनिक-साहित्य के इतिहास की दृष्टि से इसका महत्त्व आचारांग से अधिक है। भगवान महावीर के युग में प्रचलित मत-मतान्तरों का वर्णन इसमें विस्तृत रूप से हुआ है। सूतकृतांग का वर्तमान समय में जो संस्करण उपलब्ध है, उसमें दो श्रुतस्कंध हैं—प्रथम श्रुतस्कन्ध और द्वितीय श्रुतस्कन्ध । प्रथम में सोलह अध्ययन हैं और द्वितीय में सात अध्ययन । प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम समय अध्ययन के चार उद्देशक हैं -पहले में २७ गाथाएँ हैं, दूसरे में ३२, तीसरे में १६ तथा चौथे में १३ हैं। इस में वीतराग के अहिंसा-सिद्धान्त को बताते हुए अन्य बहुत से मतों का उल्लेख किया गया है । दूसरे वैतालीय अध्ययन में तीन उद्देशक हैं। पहले में २२ गाथाएँ, दूसरे में ३२ तथा तीसरे में २२ । वैतालीय छन्द में रचना होने के कारण इसका नाम वैतालीय है । इसमें मुख्य रूप से वैराग्य का उपदेश है। तीसरे उपसर्ग अध्ययन के चार उद्देशक हैं। पहले में १७ गाथाएँ हैं, दूसरे में २२, तीसरे में २१ तथा चौथे में २२ । इसमें उपसर्ग अर्थात् संयमी जीवन में आने वाली विघ्न-बाधाओं का वर्णन है । चौथे स्त्री-परिज्ञा अध्ययन के दो उद्देशक हैं। पहले की ३१ गाथाएँ हैं और दूसरे की २२ । इसमें साधकों के प्रति स्त्रियों द्वारा उपस्थित किये जाने वाले ब्रह्मचर्यघातक विघ्नों का वर्णन है । उपसर्ग अध्ययन में प्रतिकूल विघ्नों का वर्णन था और इसमें अनुकूल विघ्नों का वर्णन है। पाँचवे निरय-विभक्ति अध्ययन के दो उद्देशक हैं। पहले में २७ गाथाएँ हैं और दूसरे में २५ । दोनों में नरक के दुःखों का वर्णन है । छठे वीरस्तुति अध्ययन का कोई उद्देशक नहीं है, इसमें २६ गाथाओं में भगवान महावीर की स्तुति की गई है। सातवें कुशील-भाषित अध्ययन में ३० गाथाएं हैं, जिसमें कूशील एवं चारित्रहीन व्यक्ति की दशा का वर्णन है । आठवें वीर्य अध्ययन में २६ गाथाएँ हैं, इसमें वीर्य अर्थात् शुभ एवं अशुभ प्रयत्न का स्वरूप बताया है। नौवें धर्म अध्ययन में ३६ गाथाएं हैं, जिसमें धर्म के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। दशवें समाधि अध्ययन में २४ गाथाएँ हैं, जिसमें धर्म में समाधि अर्थात् धर्म में स्थिरता का कथन किया गया है। ग्यारहवें मार्ग अध्ययन में ३८ गाथाएँ हैं, जिसमें संसार के बन्धनों से छुटकारा प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है। बारहवें समवसरण अध्ययन में २२ गाथाएँ हैं,
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